Thursday, April 16, 2020

कोर्ट में गीता की शपथ क्यों दिलाई जाती है ?

जैसा की आप लोगों ने कई बॉलीवुड फिल्मों में देखा होगा कोर्ट परिसर में लाल कपडे में लपेटी एक किताब गवाह देने वाले के सामने लायी जाती थी और वह सत्य बोलने की शपथ लेता है ,क्या आपने सोचा है ऐसा क्यों होता है कब से शुरुआत हुई। 

गीता ही क्यों :-

सवाल यह उठना भी लाजमी है की गीता ही क्यों रामायण या कोई और धार्मिक ग्रन्थ क्यों नहीं जबकि कृष्ण ने युद्ध के स्थापित आदर्श नियमों के पालन नहीं किया आवश्यक्तानुसार कूटनीति और झूठ का सहारा लिया था। वहीँ राम मर्यादा पुरुषोत्तम और परम सत्यवादी थे। इसका सटीक जवाब यही हो सकता है की रामायण कई  प्रकार की थीं एक रिसर्च के मुताबिक लगभग 300 प्रकार की रामायण उपलब्ध हैं। जैसे तुलसीदास कृत 'रामचरितमानस 'है जबकि मूलग्रंथ वाल्मीकि की 'रामायण ' है ,वहीँ गीता एक ही प्रचलित ग्रन्थ था। 


शपथ लेने का इतिहास :-


भारत में मुगलों ने ही धार्मिक किताबों पर हाथ रखकर शपथ लेने की प्रथा शुरू की लेकिन यह प्रथा सिर्फ दरबार तक सीमित थी कोई कानूनी स्वरुप देखने को नहीं मिलता। चूंकि मुग़ल शासक अपने लाभ के लिए छल-कपट ,झूठ -फरेब का सहारा लेते थे इसलिए भारत के  बहुसंख्यक नागरिकों पर विश्वास नहीं करते थे लेकिन उन्हें इतना निश्चित आभास हुआ की भारतीय लोग अपने धर्म ग्रन्थ को उठा लेने की बाद झूठी शपथ नहीं ले सकते। इतिहासकारों के रचनाओं से उन्हें हिन्दू धर्म के शपथ स्वरुप गंगा -तुलसी का ज्ञान रहा होगा। 


<> अंग्रेज़ों ने भारतीय शपथ अधिनियम 1873 में इसे कानूनी स्वरुप दिया और सभी अदालतों में लागू कर दिया गया। इस अधिनियम के अंदर हिन्दू -गीता ,मुस्लिम -कुरान ,ईसाई -बाइबिल पर हाथ रखकर शपथ लेते थे।


<> लॉ कमीशन की 28वीं रिपोर्ट के आधार पर 1969 के शपथ अधिनियम के पास होते ही धार्मिक ग्रंथों पर हाथ रख कर शपथ लेने की रीति समाप्त हो गयी।

वर्तमान स्वरूप में शपथ :-
"I Do Swear In The Name Of God Solemnly Affirm That What I Shall State Shall be The Truth ,The Whole Truth And Nothing But The Truth"

"मैं ईश्वर के नाम पर शपथ लेता हूं, ईमानदारी से पुष्टि करता हूं जो कुछ भी कहूंगा,सत्य कहूंगा संपूर्ण सत्य और सत्य के अलावा कुछ भी नहीं कहूंगा ।" 


महत्त्वपूर्ण तथ्य :-

<> अब शपथ सिर्फ एक सर्वशक्तिमान भगवान् के नाम पर दिलाई जाती है


<> अपराधी को शपथ नहीं दिलाई जाती , भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20 के अनुसार कोई व्यक्ति अपने विरुद्ध गवाह बनने के लिए विवश नहीं किया जाएगा !


<> शपथ लेने के बाद झूठ बोलने पर 7 वर्ष का कारावास हो सकता है । ( सेक्शन 193 IPC के अंतर्गत )


<> शपथ अधिनियम 1969 में प्रावधान है कि 12 साल से कम उम्र को किसी प्रकार की शपथ नहीं लेनी होती है ।

<> गवाह दो तरीके से अपने कथन दर्ज करा सकता है 
1. शपथ खाकर
2. शपथ पत्र पर लिखकर 

<> प्राचीन समय में लोग धार्मिक मूल्यों को अधिक महत्व देते थे इसलिए राजाओं और अंग्रेजों ने लोगों से सच उगलवाने के लिए धार्मिक पुस्तकों का उपयोग किया जाता था ।

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