मेक इन इंडिया : -
विचार : 15 अगस्त 2014 को प्रधानमंत्री के भाषण से जिसकी औपचारिक शुरुआत सितम्बर 2014 में किया गया।
लोगो : एक शेर जो अशोक चक्र से प्रेरित है ,भारत को हर क्षेत्र में सफलता को दर्शाता है।
प्रमुख क्षेत्र :ऑटोमोबाइल ,विमानन जैव प्रोद्यौगीकी ,इलेक्ट्रॉनिक ,फार्मासूटिकल ,IT ,मीडिया एवं मनोरंजन ,तेल और गैस ,बंदरगाह शिपिंग ,नवीकरणीय ऊर्जा ,पर्यटन।
25 सितम्बर 2014 को भारत सरकार ने मेक इन इंडिया लांच किया इसका उद्देश्य भारत के विनिर्माण क्षेत्र को प्रोत्शाहन देना। विनिर्माण क्षेत्र न सिर्फ उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि रोजगार एवं समावेशी विकाश के द्रष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। 2014 में भारत का विनिर्माण क्षेत्र में योगदान मात्र 16 % था जो चीन के विनिर्माण के आधे से भी कम है।
इस कार्यकम के लांच होते ही विश्व जगत के निवेशकों ने काफी रूचि दिखाई जो 2015 में भारत FDI के लिए सबसे महत्वपूर्ण देश बनकर उभरा और चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका को पीछे छोड़ दिया।
लक्ष्य :
. विनिर्माण सेक्टर का योगदान जीडीपी में 16 % से बढ़ाकर 25 %योगदान 2022 तक करना ( बाद में 2025 कर दिया गया )
. विनिर्माण सेक्टर में 2022 तक 100 मिलियन रोजगार सृजन करना।
. विनिर्माण क्षेत्र में 12 - 14 % वार्षिक वृद्धि करना
. नवाचार (इनोवेशन ) एवं उद्दमिता (एंटरप्रेनरशिप ) को बढ़ावा देना।
. मुख्य वस्तुओं का विनिर्माण 2022 तक भारत में शुरू करना जिससे आयात में कमी लायी जा सके।
. उत्पादन बढाकर कीमत में कमी लाना।
कई समीक्षक इसका मूल्याङ्कन में मानते हैं की इस प्रकार के पहल के परिणाम आने में समय लगता है ,वहीँ कुछ का मानना है की यह फेल हो चुका है।
निम्न तीन मापदंडो से समीक्षा की जा सकती है-
1 . निवेश :-
इस उद्देश्य के शुरुआत में निवेशक ने रूचि दिखाई जिसके परिणामस्वरूप 2015 में वृद्धि देखि गयी और बाद में कमी देखने को मिलती है,कारण 2016 की नोटबंदी या 2017 का जीएसटी प्रभाव में आना हो सकता ।
2013 -2014 में सकल स्थायी पूँजी निर्माण ( Gross fixed capital formation GFCF ) जीडीपी का 31. 3 % था वह 2017 -2018 में गिरकर 28. 6 % हो गया।
GFCF : सरकारी और निजी क्षेत्र की कुल आय का विनिर्माण क्षेत्र में स्थायी शुद्ध पूँजी व्यय का एक आकलन है ,जैसे मशीनरी ,वाहन ,रिहायशी इमारतें आदि पर व्यय शामिल है
. इसका बढ़ना रोजगार और उत्पादन में वृद्धि का संकेत देता है जबकि कमी अर्थव्यवस्था में ठहराव और मंदी की ओर बढ़ने का संकेत देता है।
. GFCF में कमी का प्रमुख कारण आम जनता की बचत में कमी आना. हालाँकि प्राइवेट कॉर्पोरेट सेक्टर की बचत में वृद्धि के बावजूद निर्माण क्षेत्र में काम निवेश करना
2. इंडेक्स ऑफ़ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन (IIP) में कमी
IIP किसी भी अर्थव्यवस्था में वृद्धि की गुणात्मक अवस्था प्रदर्शित करता है ,जब कोई उद्द्योग अपने उत्पादन क्षमता ( यूनिट ) में हर वर्ष वृद्धि करके साथ नई यूनिट जोड़ता है ,लेकिन इसमें कमी आयी है। 2012 -2019 के बीच दो मौके ऐसे आये हैं जब वृद्धि दर दो आंकड़ों तक पहुँच गयी अन्यथा यह तीन प्रतिशत से भी काम रही है।
3. रोजगार
इस क्षेत्र में मेक इन इंडिया के तहत बहुत कुछ हांसिल नहीं हुआ। NSSO के आंकड़ों के अनुसार 45 साल में सर्वाधिक बेरोजगारी की खबरें सामने आयी हैं।
परिणाम के कारण
. विदेशी निवेश आने की बड़ी मात्रा में संभावना जो बहुत ज्यादा आकर्षित नहीं कर पाया क्योंकि हमारे यहाँ आर्थिक वातावरण ,श्रम कानून , पर्यावरणीय नियम ,आधारभूत संरचना आदि में कुछ कमियां रही जिससे FDI का प्रवाह बाधित हुआ।
. इस समय (2014 -2019 ) में वैश्विक मंदी का प्रभाव था जिससे मांग में कमी देखी गयी। वैश्विक ग्रोथ रेट 2.5 % के आसपास रही जो अच्छे संकेत नहीं थे ,
. नीतियों को जमीनी स्तर पर लागू करने का आभाव जिससे यह ,मात्र एक योजना बन कर रह गयी।
. विनिर्माण में 12-14 % वार्षिक वृद्धि का लक्ष्य अति महत्वकांक्षी था जबकि विनिर्माण में भारत में वृद्धी सामान्यतः 3-4 % रहती आयी है।
. इसमें 25 सेक्टर शामिल किये गए जो नीति निर्माताओं ने संपूर्ण अर्थव्यवस्था को ही समेटने का प्रयास किया जबकि चुनिंदा सेक्टरों का चयन कर आगे बढ़ने की जरूरत थी।
. संरक्षणवाद की बढ़ती वैश्विक नीति से भी प्रगति में बाधा उत्पन्न होने से प्रभावित हुआ।
वस्तुतः भारत ने व्यापर के माहौल को सुदृढ़ किया है जिससे ईज ऑफ़ डूइंग इंडेक्स में लगातार बेहतर प्रदर्शन कर रहा है ,और निश्चित ही आगे अपनी संवृद्धि का साक्षी होगा। अपनी 5 वर्ष की यात्रा में मेक इन इंडिया ने काफी कुछ रेल ,रक्षा उपकरण ,और मिसाइल आदि का निर्माण किया है जो आगे इसके उज्जवल भविष्य की सम्भावनाओ को चमकदार बनाये रखेगा।
(source:PIB)
विचार : 15 अगस्त 2014 को प्रधानमंत्री के भाषण से जिसकी औपचारिक शुरुआत सितम्बर 2014 में किया गया।
लोगो : एक शेर जो अशोक चक्र से प्रेरित है ,भारत को हर क्षेत्र में सफलता को दर्शाता है।
प्रमुख क्षेत्र :ऑटोमोबाइल ,विमानन जैव प्रोद्यौगीकी ,इलेक्ट्रॉनिक ,फार्मासूटिकल ,IT ,मीडिया एवं मनोरंजन ,तेल और गैस ,बंदरगाह शिपिंग ,नवीकरणीय ऊर्जा ,पर्यटन।
25 सितम्बर 2014 को भारत सरकार ने मेक इन इंडिया लांच किया इसका उद्देश्य भारत के विनिर्माण क्षेत्र को प्रोत्शाहन देना। विनिर्माण क्षेत्र न सिर्फ उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि रोजगार एवं समावेशी विकाश के द्रष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। 2014 में भारत का विनिर्माण क्षेत्र में योगदान मात्र 16 % था जो चीन के विनिर्माण के आधे से भी कम है।
इस कार्यकम के लांच होते ही विश्व जगत के निवेशकों ने काफी रूचि दिखाई जो 2015 में भारत FDI के लिए सबसे महत्वपूर्ण देश बनकर उभरा और चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका को पीछे छोड़ दिया।
लक्ष्य :
. विनिर्माण सेक्टर का योगदान जीडीपी में 16 % से बढ़ाकर 25 %योगदान 2022 तक करना ( बाद में 2025 कर दिया गया )
. विनिर्माण सेक्टर में 2022 तक 100 मिलियन रोजगार सृजन करना।
. विनिर्माण क्षेत्र में 12 - 14 % वार्षिक वृद्धि करना
. नवाचार (इनोवेशन ) एवं उद्दमिता (एंटरप्रेनरशिप ) को बढ़ावा देना।
. मुख्य वस्तुओं का विनिर्माण 2022 तक भारत में शुरू करना जिससे आयात में कमी लायी जा सके।
. उत्पादन बढाकर कीमत में कमी लाना।
कई समीक्षक इसका मूल्याङ्कन में मानते हैं की इस प्रकार के पहल के परिणाम आने में समय लगता है ,वहीँ कुछ का मानना है की यह फेल हो चुका है।
निम्न तीन मापदंडो से समीक्षा की जा सकती है-
1 . निवेश :-
इस उद्देश्य के शुरुआत में निवेशक ने रूचि दिखाई जिसके परिणामस्वरूप 2015 में वृद्धि देखि गयी और बाद में कमी देखने को मिलती है,कारण 2016 की नोटबंदी या 2017 का जीएसटी प्रभाव में आना हो सकता ।
2013 -2014 में सकल स्थायी पूँजी निर्माण ( Gross fixed capital formation GFCF ) जीडीपी का 31. 3 % था वह 2017 -2018 में गिरकर 28. 6 % हो गया।
GFCF : सरकारी और निजी क्षेत्र की कुल आय का विनिर्माण क्षेत्र में स्थायी शुद्ध पूँजी व्यय का एक आकलन है ,जैसे मशीनरी ,वाहन ,रिहायशी इमारतें आदि पर व्यय शामिल है
. इसका बढ़ना रोजगार और उत्पादन में वृद्धि का संकेत देता है जबकि कमी अर्थव्यवस्था में ठहराव और मंदी की ओर बढ़ने का संकेत देता है।
. GFCF में कमी का प्रमुख कारण आम जनता की बचत में कमी आना. हालाँकि प्राइवेट कॉर्पोरेट सेक्टर की बचत में वृद्धि के बावजूद निर्माण क्षेत्र में काम निवेश करना
2. इंडेक्स ऑफ़ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन (IIP) में कमी
IIP किसी भी अर्थव्यवस्था में वृद्धि की गुणात्मक अवस्था प्रदर्शित करता है ,जब कोई उद्द्योग अपने उत्पादन क्षमता ( यूनिट ) में हर वर्ष वृद्धि करके साथ नई यूनिट जोड़ता है ,लेकिन इसमें कमी आयी है। 2012 -2019 के बीच दो मौके ऐसे आये हैं जब वृद्धि दर दो आंकड़ों तक पहुँच गयी अन्यथा यह तीन प्रतिशत से भी काम रही है।
3. रोजगार
इस क्षेत्र में मेक इन इंडिया के तहत बहुत कुछ हांसिल नहीं हुआ। NSSO के आंकड़ों के अनुसार 45 साल में सर्वाधिक बेरोजगारी की खबरें सामने आयी हैं।
परिणाम के कारण
. विदेशी निवेश आने की बड़ी मात्रा में संभावना जो बहुत ज्यादा आकर्षित नहीं कर पाया क्योंकि हमारे यहाँ आर्थिक वातावरण ,श्रम कानून , पर्यावरणीय नियम ,आधारभूत संरचना आदि में कुछ कमियां रही जिससे FDI का प्रवाह बाधित हुआ।
. इस समय (2014 -2019 ) में वैश्विक मंदी का प्रभाव था जिससे मांग में कमी देखी गयी। वैश्विक ग्रोथ रेट 2.5 % के आसपास रही जो अच्छे संकेत नहीं थे ,
. नीतियों को जमीनी स्तर पर लागू करने का आभाव जिससे यह ,मात्र एक योजना बन कर रह गयी।
. विनिर्माण में 12-14 % वार्षिक वृद्धि का लक्ष्य अति महत्वकांक्षी था जबकि विनिर्माण में भारत में वृद्धी सामान्यतः 3-4 % रहती आयी है।
. इसमें 25 सेक्टर शामिल किये गए जो नीति निर्माताओं ने संपूर्ण अर्थव्यवस्था को ही समेटने का प्रयास किया जबकि चुनिंदा सेक्टरों का चयन कर आगे बढ़ने की जरूरत थी।
. संरक्षणवाद की बढ़ती वैश्विक नीति से भी प्रगति में बाधा उत्पन्न होने से प्रभावित हुआ।
वस्तुतः भारत ने व्यापर के माहौल को सुदृढ़ किया है जिससे ईज ऑफ़ डूइंग इंडेक्स में लगातार बेहतर प्रदर्शन कर रहा है ,और निश्चित ही आगे अपनी संवृद्धि का साक्षी होगा। अपनी 5 वर्ष की यात्रा में मेक इन इंडिया ने काफी कुछ रेल ,रक्षा उपकरण ,और मिसाइल आदि का निर्माण किया है जो आगे इसके उज्जवल भविष्य की सम्भावनाओ को चमकदार बनाये रखेगा।
(source:PIB)
Helpfull
ReplyDeletePlease continue briefing PIB
ReplyDeleteYes it will continue...
ReplyDeleteCrystal clearly explained 🙏
ReplyDeleteThankquu
ReplyDeletePass in some field, need to take it on positive way
ReplyDeletethis article for you , and your analysis.
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