क्यूरेटिव पिटीशन (उपचारात्मक याचिका ):
एक बेगुनाह को मारना इंसानियत को मारने के बराबर है ,भले ही हमने अपराध को खत्म करने के लिए अदालत का निर्माण किया ,पर इंसान होने के नाते गलती होना स्वाभाविक है
सुप्रीम कोर्ट से दोषी करार व्यक्ति को फांसी की सजा से बचने के लिए उसके पास दो विकल्प होते हैं :-
. दया याचिका ( यह राष्ट्रपति के पास लगायी जाती है )
. पुनर्विचार याचिका ( यह सुप्रीम कोर्ट में लगायी जाती है )
इन दोनों याचिकाओं के खारिज होने के बाद क्यूरेटिव पिटिशन का विकल्प बचता है हाल ही में निर्भया मामले से जुड़ा है। जिसे निर्भया मामले के मुख्य दोषी में से एक विनय शर्मा ने याचिका दायर की है ,जिसे दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट ने मुख्य चारों (एक आरोपी ने आत्महत्या कर ली व एक आरोपी नाबालिग )आरोपी को मौत की सजा सुनाई और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा।
निर्भया मामला : 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में चलती बस में 6 लोगो ने बलात्कार जैसी वीभत्स घटना अंजाम दिया जिसके चलते निर्भया की 29 दिसंबर 2012 को सिंगापुर में मौत हो गयी।
क्यूरेटिव पिटीशन मात्र अपनी सुनिश्चित की गई सजा में नरमी लाने के लिए है ,यह केवल आरोपी द्वारा निर्णय में चिन्हित मुद्दे पर ही याचिका दायर कर सकता है , जो सुप्रीम कोर्ट की 5 जजो की बेंच सुनती है
क्यूरेटिव पिटिशन का संवैधानिक उल्लेख नहीं है इसकी शुरुआत 2002 में रूपा हुरा बनाम अशोक हुरा केस से हुई।
सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने के बाद बिल्कुल अंतिम चरण में फैसला को बदलने या टालने की अपील की जा सकती है।
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