Saturday, March 28, 2020

मध्यकालीन भारत ( 800 ई.-1200 ई. ) - आर्थिक और सामाजिक जीवन


मध्यकालीन भारत ( 800 ई.-1200 ई. ) का आर्थिक जीवन :-


निष्क्रियता और पतन :-


आर्थिक दृष्टि से उत्तर भारत में यह समय निष्क्रिय रहा और व्यापर वाणिज्य के पतन का काल भी माना जाता है , सातवीं से दशवीं शताब्दी के मध्य यह काल शहरों के पतन और स्वर्ण मुद्राओं और चांदी के सिक्कों के अभाव से दिखाई पड़ता है

() बैजंतिया साम्राज्य ( इस्तांबुल ) ,सासानी साम्राज्य ( ईरान ) का उदय रोमन साम्राज्य (इटली ) के पतन का कारण हुआ था ,भारत के इन दोनों के साथ ही व्यापक व्यापारिक सम्बन्ध थे ,हालांकि रोमन साम्राज्य के साथ भारत का व्यापार समृद्ध और लाभकारी था। फिर भी रोमन साम्राज्य के पतन का प्रभाव उतना नहीं हुआ।

स्थानीयता और छोटे राज्यों का प्रभुत्त :-





 भारत के दक्षिण पूर्व एशिया जिसे सुवर्णभूमि (इंडोनेशिया ) और चीन के साथ प्रगाढ़ होते ही व्यापारिक सम्बन्ध थे ,बंगाल ,दक्षिण भारत, मालवा और गुजरात को इनसे अत्यधिक लाभ हुआ। इस समय देश में व्यापर का पतन आंतरिक घटना क्रम के कारण भी हुआ ,अनेक छोटे राज्य के स्थानीय आत्मनिर्भरता में उल्लेखनीय विकास हुआ। इन राज्यों में कई क्षेत्रों में कृषि का विकास हुआ,किसानों के प्रोत्साहन व अनुरोध  यायावार जनजातियां भी कृषि करने लग गयीं। 



निषेधता :- 

इस काल के चिंतन और धर्मशास्त्रों में भी वाणिज्य ह्रास की झांकी दिखाई पड़ती है,भारत के बाहर यात्रा करने वालों में प्रतिबन्ध लगा दिया गया। भारतीय व्यापारी ,दार्शनिक ,चिकित्सक और शिल्पी बग़दाद और  पश्चिम एशिया के अन्य मुस्लिम शहरों में पंहुचे ,शायद ये निषेध सिर्फ ब्राम्हणों के लिए था या फिर इसका उद्देश्य भारतीयों पर इस्लाम या बौद्ध प्रधान देशों के असनातन धार्मिक विचार से प्रभावित होने का उपजा भय था।

हालाँकि समुद्री यात्रा निषेधता से भारत के समुद्री व्यापार, दक्षिण पूर्व एशिया तथा चीन के साथ वृद्धि में बाधक नहीं हुआ। छठवीं सदी से दक्षिण भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के बीच काफी काफी जोर शोर से व्यापार होता रहा। 


साहित्यिक और धार्मिक :- 

इस काल के साहित्य से पता चलता है के उन क्षेत्रों के देशों से सम्बन्ध में दक्षिण भारत के लोगो की जानकारी बढ़ती जा रही थी। जैसे - हरिषेण के बृहत्कथा-कोश से उन क्षेत्रों की भाषा ,  वेश -भूषा। ' जादुई समुद्र ' में भारतीय व्यापारियों के मणिग्रामन और नानदेशी श्रेणियों में संगठित होने की कथायें मिलती है। 

बहुत से भारतीय व्यापारी दक्षिण -पूर्व एशियाई देशों में बस गए तथा वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये।कालांतर में पुरोहित वर्ग के आगमन के साथ उन क्षेत्रों में बौद्ध एवं हिन्दू धार्मिक विचारों का समावेश हुआ ,जैसे - कम्बोडिया का अंकोरवाट मंदिर और बोरोबुदूर का बौद्ध मंदिर। इस प्रकार भारतीय संस्कृति ने स्थानीय संस्कृति से मिल कर नयी संस्कृति तथा साहित्यिक विधाओं को जनम दिया। 


समुद्र व्यापार और चीन :- 


आम तौर पर अफ्रीका और पश्चिम एशिया के उत्पाद भारत के मालाबार तट से आगे नहीं जाते थे,वहीँ चीन के जहाज भी मलक्का से आगे नहीं बढ़ पाते थे,इस प्रकार भारत ,दक्षिण पूर्व एशिया,अफ्रीका और चीन के बीच होने वाले व्यापार के लिए महत्वपूर्ण काम करते थे 

चीन भारी मात्रा में मसालों,हांथी दांत ,जड़ी बूटियां,लाख सुगन्धियों और तरह तरह की नफीस चीज़ों का आयत के लिए या तो भारत या भारत के समुद्री मार्ग पर निर्भर था। मालाबार ,बंगाल और बर्मा की सागवान की लकड़ी चीन के जहाज निर्माण की उपलब्धता पूर्ण होती थी ,चीन के साथ होने वाला बहुत-सा व्यापार भारतीय जहाजों के जरिये होता था। 


चीनी इतिहासकार के अनुसार चीनी दरबार में बौद्ध भिक्षुओं की सर्वाधिक संख्या ,चीन की कैंटन नदी में भारतीय भारतीय व्यापरियों की जहाज का भरा होना तथा अकेले कैंटन में तीन ब्राम्हणीय मंदिर होने से भारतीयों की उपस्थिति के साक्ष्य थे। 


चीनी सम्राटों के दरबारों को कई दूतमण्डल भेजकर भारतीय शासकों ने व्यापार को प्रोत्साहन देने का प्रयास किया ,तथा मलय या अन्य पडोसी देशों द्वारा द्विपक्षीय व्यापार में हस्तक्षेप करने पर नौसैनिक आक्रमण हुए।  चोल राजा राजेंद्र प्रथम ने चीन को भेजे दूतमण्डल के साथ खुद भी चीन की यात्रा किया।  इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है की यह द्विपक्षीय व्यापार कितना महत्वपूर्ण और लाभप्रद रहा होगा। 


उत्तरार्ध :- 


दशवीं सदी के अंत और ग्यारहवीं सदी के आरम्भ में भारतीय व्यापरियों और पुरोहितों के बढ़ते दबदबे से चीन में संरक्षण की सुगबुगाहट होने लगी। भारत के विदेशी व्यापार के विकास का आधार सबल जहाजरानी परंपरा थी जिसमे जहाज निर्माण और शक्तिशाली नौसेना के आलावा व्यापारियों की कुशलता और उद्द्यमशीलता का भी समावेश था।

तेरहवीं सदी में चीन सोने और चांदी के निर्यात पर प्रतिबन्ध लगाने का प्रयास किया,साथ ही 'मेरिनर कंपस ' (नाविक दिशा सूचक ) का सफल प्रयोग और चीन के जहाजों की विशालता से भारतीय जहाज उखड़ते चले गए ,क्योंकि चीन के जहाज अधिक बड़े और द्रुतगामी थे। 

पश्चिम दुनिया के साथ भारत के व्यापार में मंदी आयी तो दक्षिण पूर्व एशिया तथा चीन के साथ उसके व्यापार में धीरे-धीरे तेजी आती रही। व्यापार के क्षेत्र में दक्षिण भारत ,बंगाल,और गुजरात आगे रहे और यही क्षेत्र समृद्धि और सम्पत्ति का महत्त्वपूर्ण कारण था।

सामाजिक जीवन :- 


<> इस समय में समाज में एक वर्ग का अभ्युदय हुआ  जिसे समकालीन लेखकों ने सामंत ,राजपूत ( राणक ,राउत ) आदि उपनामों से अभिहित किया। इनमे से तो कुछ सरकारी ओहदेदार थे जिन्हे तनख्वाह की जगह राजस्वदायी गाँव दे दिए जाते थे। कुछ हारे हुए राजा और उनके समर्थक तथा कुछ स्थानीय वंशानुगत सरदार अपने सशक्त समर्थक की सहायता से छोटे - मोटे इलाकों में अपनी सत्ता हासिल कर ली थी। 

<> जनजातीय नेता ,गाँव के मुखिया कुछ कुलों के नेताओं हमेशा एक दूसरे से जूझते रहे ,और अपने प्रभाव क्षेत्र में वृद्धि करते रहे

<> राजा अपने अधिकारीयों और समर्थकों को दिए गए राजस्व् दान में मिलने वाली जागीर ,इन शासकों के अधिकारी राजस्वी इलाके को अपनी अपनी जागीरों को वंशानुगत मानते थे ,कालांतर में सरकारी अधिकारी भी वंशानुगत माने जाने लगे।

<>  वंशानुगत सरदार धीरे -धीरे न केवल राजस्व वसूलते थे बल्कि अधिकाधिक प्रशासनिक अधिकार भी हथियाने लग गए।  जैसे -अपने अधिकार से सजा देना , जुर्माना लगाना। साथ ही राजा की अनुमति के बिना अपने समर्थकों को जागीर में से उपजागीर देने लग गए ,इससे समाज में सरदारों द्वारा सामंती समाज का उदय देखने को मिलता है।

सामंती समाज ( फ्यूडल समाज ) - समाज के वह प्रभत्त्व वर्ग जो जमीन को जोतने बोन का काम न करते हुए भी उसी से अपनी जीविका प्राप्त करते थे।  इस व्यवस्था  में  फलने फूलने वाले समाज को सामंती समाज कहते हैं। 

सामंती समाज से हानि - 

<>इससे केंद्रीय शक्ति यानी राजा की स्थिति कमजोर हुई। 

<>सरदारों के पास सेनाएं होती थी,जिनका उपयोग राजा के खिलाफ भी होने लगा। 

<>तुर्क आक्रमण के समय ये आतंरिक कमजोरियां साबित हुई और काफी बर्बादी देखनी पड़ी। 

<>छोटे राज्य व्यापार के रास्ते में रुकावट डालते थे। और स्थानीय निर्भरता वाली आर्थिक गतिविधयों को प्रश्रय देते थे 

<>सामंती सरदारों के प्रभुत्व से ग्रामीण स्वशासन कमजोर पड़ा। 

सामंती समाज के लाभ -

<> सामंती सरदारों के प्रभत्व क्षेत्र में अशांति ,अव्यवस्था  के काल में भी स्थानीय लोगों की सुरक्षा  रही। 

<>  सम्बंधित क्षेत्र में लोगों के जान माल की सुरक्षा प्रदान की। 

<> सरदारों ने खेती बाड़ी के विस्तार और सुधार  दिलचस्पी ली ,जो केंद्रीय शासन में कम ही देखने को मिलती थी। 

<> वही व्यापार को प्रोत्साहन देते थे जिससे अधिकाधिक स्थानीय लोग आर्थिक गतिविधि में शामिल रहते थे।

लोगों की अवस्था 


<> दस्तकारियों ( कपडा बनाने ,सोने चांदी ,धातुकर्म का काम करने वाले ) के स्तर में इस काल में कोई गिरावट नहीं आयी। अरब यात्रियों ने भारतीय किसानों की कुशलता,जमीन की उर्वरता तथा कृषि के फलने फूलने की पुष्टि की। 

<> मंत्री ,अधिकारी, सरदार  और बड़े व्यापारी बहुत शानोशौकत से रहते थे ,वे राजा की नक़ल रिहायशी भवनों से लेकर पहनावे और यहाँ तक की उपाधियों से खुद को सुसज्जित करते थे। 

<> खाद्यसामग्री की प्रचुरता थी लेकिन नगरों में ऐसे बहुत से लोग थे जिन्हें पेटभर भोजन नहीं मिलता था था। बारहवीं सदी में लिखी गयी राजतरंगिणी ( कश्मीरी इतिहास ) में भी दरबारी और सामान्य लोगों के खाद्य सामग्री में अंतर से स्थिति को सामने रखा।

<> किसानों से राजस्व के तौर पर उपज के छठे हिस्से की मांग की जाती थी ,लेकिन इसके अतिरिक्त कई शुल्क जैसे -चरागाह कर ,तालाब कर ,दानपात्र आदि की जानकारी मिलती है।

<> सरदार हर मौके का लाभ उठाकर किसानों से कुछ न कुछ ऐंठते रहते थे ,इसके साथ ही आये दिन पड़ने वाले अकाल और बर्बाद कर देने वाली लड़ाइयों को जोड़ दीजिये तो आम लोगों के दुःख की व्यथा की तस्वीर पूरी हो जाती है।

लड़ाइयों के पश्चात जलाशय  जब्त ,अन्नागार में जमा अनाज जब्त ,नगरों का तहस नहस कर देना।  इन कृत्यों को तत्कालीन लेखकों ने उचित ठहराया , इस प्रकार सामंती समाज के विकास ने आम आदमी के सिर का बोझ बहुत बढ़ा दिया। 


जाती व्यवस्था :-


<> स्मृतिकारों ने ब्राम्हणों की विशेष स्थिति का अनुमोदन किया। इस काल में निम्न जातियों की निर्योग्यता में वृद्धि हुई , शूद्र की छाया व्यक्ति को दूषित करती है या नहीं ऐसे विषय भी विचार किये जाने लगे। 

<> अंतर्जातीय विवाह को हेय दृष्टि से देखा जाता था। उच्च जाती का लड़का तथा निम्न जाती की लड़की से विवाह करता था तो इस दाम्पत्यि की संतान जाती माता की जाती से निर्धारित होती थी। यदि लड़का निम्न जाती का होता था तो उसकी संतान की जाती उसी की जाती से तय होती थी। 

<> कारीगरों-दस्तकारों ( कुम्हार ,जुलाहा,सोनार ,गायक, नाई,चर्मकार,मछलीमार आदि। )  की श्रेणियां थी जो अब जातियां मानी जाने लगी ,तथा इनके धंधे को हीन समझा जाने लगा ,इस प्रकार ज्यादातर कारीगर -मजदूर और भील जैसी जनजातितों को अस्पृश्यों का दर्जा दे दिया गया। 

<> स्मृतिकारों के अनुसार शूद्र का भोजन ग्रहण करने से श्रेष्ठ व्यक्ति के पतित होने का जिक्र आया। यह कहना कठिन है की स्मृतियों के विधानों का पालन कहाँ तक किया जाता था। 

स्त्रियों की अवस्था :- 

<> आम तौर स्त्रियों को अविश्वास की दृष्टि से देखा जाता था। उन्हें सामाजिक जीवन से अलग रखा था और उनके जीवन का नियमन पुरुषों को करना होता था। 

<> भूमि के सम्बन्ध में सम्पत्तिक अधिकारों के विकास के साथ स्त्रियों के अधिकारों की भी वृद्धि हुई। परिवार की संपत्ति की रक्षा के लिए स्त्रियों को अपने पुरुष सम्बन्धियों की संपत्ति पर उत्तराधिकार दिया गया। विधवा की संपत्ति का उत्तराधिकार उसकी पुत्री को भी प्राप्त था। इस प्रकार सामंती समाज ने निजी संपत्ति की अवधारणा को मजबूत बनाया। 

<> अरब लेखक सुलेमान के अनुसार राजाओं की पत्नियां कभी - कभी सती हो जाती थीं लेकिन ऐसा करना न करना उनकी इच्छा पर निर्भर था। मालूम होता है की सामंती सरदार बड़ी संख्या में स्त्रियों को रखने लगे थे।  संपत्ति को लेकर विवाद छिड़ने लगे,और इससे सती प्रथा अधिक फैली। 

<> इस काल में भी पहले की तरह स्त्रियों को सामन्यतः मानसिक दृष्टि से हीन माना जाता था। उनका कर्त्तव्य आँख मूँद कर पति की आज्ञा का पालन करना चाहिए। उन्हें वेद पढ़ना इस काल में वर्जित रहा। इसके आलावा लड़कियों की विवाह की उम्र भी कम कर दी गयी,जिससे उच्च शिक्षा प्राप्त करने के रास्ते भी बंद हो गए। 

<>कुछ नाटकों से मालूम होता है की दरबारी स्त्रियों यहाँ तक की रानी की अनुचरियाँ भी संस्कृत और प्राकृत में उत्त्कृष्ट कवितायेँ लिख सकती थीं। कई कथाओं से ज्ञात होता है की राजकुमारियां,ललितकलाओं में खासकर चित्रकारी और संगीत में प्रवीण होती थी।

<> स्मृतियों के विधान अनुसार छः से आठ वर्ष की आयु से पहले विवाह कर दिए जाते थे ,कुछ परिस्थितियों में पुनर्विवाह की अनुमति थी जैसे - पति पत्नी को छोड़कर चला जाये और उसका पता न मिले , मृत्यु हो जाने पर ,नपुंशक हो ,जाती बहिष्कृत कर दिया गया हो या गृहत्यागी हो गया हो। 










स्रोत :- NCERT 












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