जनता कर्फ़्यू
यह जनता का,जनता के द्वारा लगाया गया खुद पर एक प्रचलित आंदोलन है। इतिहास में सामान्यतः इसका प्रयोग सरकार के खिलाफ होता आया है।
चर्चा में क्यों :-
विश्वव्यापी घोषित महामारी कोरोना जिसने अब तक 186 देशों को अपने चपेट में लिया है ,वायरस COVID-19 जो भारत में भी दस्तक दे चुका है , सुरक्षा के मद्देनज़र भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 मार्च 2020 को देश के नाम सम्बोधन में इसका जिक्र किया है।
कैसा रहा इसका इतिहास :-
"अहमदाबाद-रॉयल सिटी टू मेगा सिटी " नमक किताब में कहा गया है की यह शब्द् ( जनता कर्फ्यू ) 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन से लिया गया है। दरअसल इसमें लोग अपने घर से बाहर न निकल कर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बहिष्कार करती है जिसके फलस्वरूप शहर के सेवाएं बंद हो गयी,तभी से इस तरह के विरोध प्रदर्शन को जनता कर्फ्यू कहा जाने लगा।
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इसके आलावा गुजरात -महाराष्ट्र के राज्य बनने से पहले बॉम्बे स्टेट हुआ करता था,लेकिन बंटवारे के दौरान बॉम्बे के मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई कच्छ के क्षेत्र को गुजरात को न देने की ज़िद में अड़े थे इसके लिए उन्होंने भूख हड़ताल में भी भाग लिया , इसी दौरान गुजरात के समाजसेवी इंदुलाल याग्निक ने " जनता कर्फ्यू " का आवाह्न किया और मोरारजी देसाई का समर्थन न करने एवं लोगों को घर में रहने की अपील की। वस्तुतः आंदोलन सफल हुआ ,और कच्छ का क्षेत्र आज गुजरात में है।<>
वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने राजनीतिक इतिहास में 1973-74 में तत्कालीन ABVP( अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ) के प्रचारक के तौर पर गुजरात के उस समय के लोकप्रिय नवनिर्माण आंदोलन में सक्रिय भूमिका में थे ।
जुलाई 1973 में चिमनभाई पटेल मुख्यमंत्री बने,लेकिन कुछ ही माह दिसंबर 1973 में उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे तथा महंगाई बढ़ने से लोग सड़कों में उतर आते हैं,कई तरीके के विरोध प्रदर्शन होते हैं उन्हीं प्रदर्शन के दौरान "जनता कर्फ्यू " देखने को मिलता है।
अंततः गुजरात के राजनितिक इतिहास में यह आंदोलन काफी सफल माना जाता है क्योंकि तत्कालीन केंद्र की इंदिरा गाँधी सरकार भी अपनी गुजरात सरकार बचा नहीं पाईं थी ,अंततः चिमनभाई पटेल को इस्तीफ़ा देना पड़ता है।
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