Monday, May 11, 2020

International Nurses Day

*In shorts *

❇️ 12 May* 

 *🔴 International Nurses Day* 
         अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस

*Theme 2020 : "Nursing the World to Health"

🔷 6 -12 May : National Nurses Week

♦️This day also marks the anniversary of Florence Nightingale's birth. Florencewas a British Social reformer and statistician, and the founder of modern nursing.

🔵 World Health Organization has designated 2020 as the Year of the Nurse and Midwife in honour of the 200th anniversary of Florence Nightingale’s birth.

♦️ Florence Nightingale is known as "Lady with the Lamp"

♦️International Council of Nurses (ICN )
🔶 Founded : 1899
🔶 HQ : Geneva, Switzerland

Thursday, April 16, 2020

कोर्ट में गीता की शपथ क्यों दिलाई जाती है ?

जैसा की आप लोगों ने कई बॉलीवुड फिल्मों में देखा होगा कोर्ट परिसर में लाल कपडे में लपेटी एक किताब गवाह देने वाले के सामने लायी जाती थी और वह सत्य बोलने की शपथ लेता है ,क्या आपने सोचा है ऐसा क्यों होता है कब से शुरुआत हुई। 

गीता ही क्यों :-

सवाल यह उठना भी लाजमी है की गीता ही क्यों रामायण या कोई और धार्मिक ग्रन्थ क्यों नहीं जबकि कृष्ण ने युद्ध के स्थापित आदर्श नियमों के पालन नहीं किया आवश्यक्तानुसार कूटनीति और झूठ का सहारा लिया था। वहीँ राम मर्यादा पुरुषोत्तम और परम सत्यवादी थे। इसका सटीक जवाब यही हो सकता है की रामायण कई  प्रकार की थीं एक रिसर्च के मुताबिक लगभग 300 प्रकार की रामायण उपलब्ध हैं। जैसे तुलसीदास कृत 'रामचरितमानस 'है जबकि मूलग्रंथ वाल्मीकि की 'रामायण ' है ,वहीँ गीता एक ही प्रचलित ग्रन्थ था। 


शपथ लेने का इतिहास :-


भारत में मुगलों ने ही धार्मिक किताबों पर हाथ रखकर शपथ लेने की प्रथा शुरू की लेकिन यह प्रथा सिर्फ दरबार तक सीमित थी कोई कानूनी स्वरुप देखने को नहीं मिलता। चूंकि मुग़ल शासक अपने लाभ के लिए छल-कपट ,झूठ -फरेब का सहारा लेते थे इसलिए भारत के  बहुसंख्यक नागरिकों पर विश्वास नहीं करते थे लेकिन उन्हें इतना निश्चित आभास हुआ की भारतीय लोग अपने धर्म ग्रन्थ को उठा लेने की बाद झूठी शपथ नहीं ले सकते। इतिहासकारों के रचनाओं से उन्हें हिन्दू धर्म के शपथ स्वरुप गंगा -तुलसी का ज्ञान रहा होगा। 


<> अंग्रेज़ों ने भारतीय शपथ अधिनियम 1873 में इसे कानूनी स्वरुप दिया और सभी अदालतों में लागू कर दिया गया। इस अधिनियम के अंदर हिन्दू -गीता ,मुस्लिम -कुरान ,ईसाई -बाइबिल पर हाथ रखकर शपथ लेते थे।


<> लॉ कमीशन की 28वीं रिपोर्ट के आधार पर 1969 के शपथ अधिनियम के पास होते ही धार्मिक ग्रंथों पर हाथ रख कर शपथ लेने की रीति समाप्त हो गयी।

वर्तमान स्वरूप में शपथ :-
"I Do Swear In The Name Of God Solemnly Affirm That What I Shall State Shall be The Truth ,The Whole Truth And Nothing But The Truth"

"मैं ईश्वर के नाम पर शपथ लेता हूं, ईमानदारी से पुष्टि करता हूं जो कुछ भी कहूंगा,सत्य कहूंगा संपूर्ण सत्य और सत्य के अलावा कुछ भी नहीं कहूंगा ।" 


महत्त्वपूर्ण तथ्य :-

<> अब शपथ सिर्फ एक सर्वशक्तिमान भगवान् के नाम पर दिलाई जाती है


<> अपराधी को शपथ नहीं दिलाई जाती , भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20 के अनुसार कोई व्यक्ति अपने विरुद्ध गवाह बनने के लिए विवश नहीं किया जाएगा !


<> शपथ लेने के बाद झूठ बोलने पर 7 वर्ष का कारावास हो सकता है । ( सेक्शन 193 IPC के अंतर्गत )


<> शपथ अधिनियम 1969 में प्रावधान है कि 12 साल से कम उम्र को किसी प्रकार की शपथ नहीं लेनी होती है ।

<> गवाह दो तरीके से अपने कथन दर्ज करा सकता है 
1. शपथ खाकर
2. शपथ पत्र पर लिखकर 

<> प्राचीन समय में लोग धार्मिक मूल्यों को अधिक महत्व देते थे इसलिए राजाओं और अंग्रेजों ने लोगों से सच उगलवाने के लिए धार्मिक पुस्तकों का उपयोग किया जाता था ।

Wednesday, April 8, 2020

What is financial emergency ??

Financial emergency is a state of emergency imposed by the president when he is satisfied that a situation has arisen due to which the financial stability or credit of India or any part of its territory is threatened .

◆Financial emergency is one of the three emergency provisions given in our Constitution.
Articles 360 empowers president to proclaim financial emergency.

GROUNDS OF DECLARATION :

◆Situation of financial instability or threat to credit of the country .


"The 38th Amendment Act of 1975 made the satisfaction of the president in declaring a financial emergency final and non questionable in any court on any ground."

But this provision was subsequently deleted by the 44th Amendment Act of 1978 stating that the satisfaction of the president is not beyond judicial review .

PARLIAMENTARY APPROVAL AND DURATION:-

The proclamation declaring financial emergency must be approved by both houses of Parliament within two months from the date of its issue .
In case if the proclamation is issued at time when loksabha has been dissolved or the dissolution of the loksabha takes place during the period of two months without approving the proclamation ,then the proclamation survives untill 30 days from the first sitting of the Loksabha  after its reconstitution, provided the rajya sabha has in the meantime approved it.

REVOCATION OF FINACIAL EMERGENCY:-

Once approved by both the houses of the Parliament , the financial emergency continues indefinitely till it is revoked.

Now the question arises how it can be revoked ??

So the financial emergency can be removed by president anytime by a subsequent proclaimation ..Such a proclamation does not require the parliamentary approval .
●●Effects of financial emergency :-
The executive authorities of the centre extends ◆to directing any state to observe such canons of financial propriety as specified;
◆to directions as president may deem necessary and adequate for the purpose .

Any of these directions may include provisions like :
reduction of salaries and allowances of all or any class of person serving in the state 
●the reservation of all money bill or other financial bills for the consideration of the president after they are passed by the legislature of the state .

The president may also issue direction of reduction of salaries and allowances of
 ●all or any class of person serving the Union 
And 
●the judges of supreme court and the high court 

During the financial emergency the centre acquires full control over the states in all financial matters .


While explaining the provisions of Financial Emergency, Dr B.R. Ambedkar states that this Article more or less on pattern of National Recovery Act of USA passed in 1932 which gave President the complete power over economic and financial matters to remove difficulties and these provisions are taken by USA after the Great Depression of 1930.

The Financial Emergency has never been imposed in any part of country, neither has Article 360 been used till now though there was a financial crisis in 1991.

Saturday, March 28, 2020

मध्यकालीन भारत ( 800 ई.-1200 ई. ) - आर्थिक और सामाजिक जीवन


मध्यकालीन भारत ( 800 ई.-1200 ई. ) का आर्थिक जीवन :-


निष्क्रियता और पतन :-


आर्थिक दृष्टि से उत्तर भारत में यह समय निष्क्रिय रहा और व्यापर वाणिज्य के पतन का काल भी माना जाता है , सातवीं से दशवीं शताब्दी के मध्य यह काल शहरों के पतन और स्वर्ण मुद्राओं और चांदी के सिक्कों के अभाव से दिखाई पड़ता है

() बैजंतिया साम्राज्य ( इस्तांबुल ) ,सासानी साम्राज्य ( ईरान ) का उदय रोमन साम्राज्य (इटली ) के पतन का कारण हुआ था ,भारत के इन दोनों के साथ ही व्यापक व्यापारिक सम्बन्ध थे ,हालांकि रोमन साम्राज्य के साथ भारत का व्यापार समृद्ध और लाभकारी था। फिर भी रोमन साम्राज्य के पतन का प्रभाव उतना नहीं हुआ।

स्थानीयता और छोटे राज्यों का प्रभुत्त :-





 भारत के दक्षिण पूर्व एशिया जिसे सुवर्णभूमि (इंडोनेशिया ) और चीन के साथ प्रगाढ़ होते ही व्यापारिक सम्बन्ध थे ,बंगाल ,दक्षिण भारत, मालवा और गुजरात को इनसे अत्यधिक लाभ हुआ। इस समय देश में व्यापर का पतन आंतरिक घटना क्रम के कारण भी हुआ ,अनेक छोटे राज्य के स्थानीय आत्मनिर्भरता में उल्लेखनीय विकास हुआ। इन राज्यों में कई क्षेत्रों में कृषि का विकास हुआ,किसानों के प्रोत्साहन व अनुरोध  यायावार जनजातियां भी कृषि करने लग गयीं। 



निषेधता :- 

इस काल के चिंतन और धर्मशास्त्रों में भी वाणिज्य ह्रास की झांकी दिखाई पड़ती है,भारत के बाहर यात्रा करने वालों में प्रतिबन्ध लगा दिया गया। भारतीय व्यापारी ,दार्शनिक ,चिकित्सक और शिल्पी बग़दाद और  पश्चिम एशिया के अन्य मुस्लिम शहरों में पंहुचे ,शायद ये निषेध सिर्फ ब्राम्हणों के लिए था या फिर इसका उद्देश्य भारतीयों पर इस्लाम या बौद्ध प्रधान देशों के असनातन धार्मिक विचार से प्रभावित होने का उपजा भय था।

हालाँकि समुद्री यात्रा निषेधता से भारत के समुद्री व्यापार, दक्षिण पूर्व एशिया तथा चीन के साथ वृद्धि में बाधक नहीं हुआ। छठवीं सदी से दक्षिण भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के बीच काफी काफी जोर शोर से व्यापार होता रहा। 


साहित्यिक और धार्मिक :- 

इस काल के साहित्य से पता चलता है के उन क्षेत्रों के देशों से सम्बन्ध में दक्षिण भारत के लोगो की जानकारी बढ़ती जा रही थी। जैसे - हरिषेण के बृहत्कथा-कोश से उन क्षेत्रों की भाषा ,  वेश -भूषा। ' जादुई समुद्र ' में भारतीय व्यापारियों के मणिग्रामन और नानदेशी श्रेणियों में संगठित होने की कथायें मिलती है। 

बहुत से भारतीय व्यापारी दक्षिण -पूर्व एशियाई देशों में बस गए तथा वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये।कालांतर में पुरोहित वर्ग के आगमन के साथ उन क्षेत्रों में बौद्ध एवं हिन्दू धार्मिक विचारों का समावेश हुआ ,जैसे - कम्बोडिया का अंकोरवाट मंदिर और बोरोबुदूर का बौद्ध मंदिर। इस प्रकार भारतीय संस्कृति ने स्थानीय संस्कृति से मिल कर नयी संस्कृति तथा साहित्यिक विधाओं को जनम दिया। 


समुद्र व्यापार और चीन :- 


आम तौर पर अफ्रीका और पश्चिम एशिया के उत्पाद भारत के मालाबार तट से आगे नहीं जाते थे,वहीँ चीन के जहाज भी मलक्का से आगे नहीं बढ़ पाते थे,इस प्रकार भारत ,दक्षिण पूर्व एशिया,अफ्रीका और चीन के बीच होने वाले व्यापार के लिए महत्वपूर्ण काम करते थे 

चीन भारी मात्रा में मसालों,हांथी दांत ,जड़ी बूटियां,लाख सुगन्धियों और तरह तरह की नफीस चीज़ों का आयत के लिए या तो भारत या भारत के समुद्री मार्ग पर निर्भर था। मालाबार ,बंगाल और बर्मा की सागवान की लकड़ी चीन के जहाज निर्माण की उपलब्धता पूर्ण होती थी ,चीन के साथ होने वाला बहुत-सा व्यापार भारतीय जहाजों के जरिये होता था। 


चीनी इतिहासकार के अनुसार चीनी दरबार में बौद्ध भिक्षुओं की सर्वाधिक संख्या ,चीन की कैंटन नदी में भारतीय भारतीय व्यापरियों की जहाज का भरा होना तथा अकेले कैंटन में तीन ब्राम्हणीय मंदिर होने से भारतीयों की उपस्थिति के साक्ष्य थे। 


चीनी सम्राटों के दरबारों को कई दूतमण्डल भेजकर भारतीय शासकों ने व्यापार को प्रोत्साहन देने का प्रयास किया ,तथा मलय या अन्य पडोसी देशों द्वारा द्विपक्षीय व्यापार में हस्तक्षेप करने पर नौसैनिक आक्रमण हुए।  चोल राजा राजेंद्र प्रथम ने चीन को भेजे दूतमण्डल के साथ खुद भी चीन की यात्रा किया।  इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है की यह द्विपक्षीय व्यापार कितना महत्वपूर्ण और लाभप्रद रहा होगा। 


उत्तरार्ध :- 


दशवीं सदी के अंत और ग्यारहवीं सदी के आरम्भ में भारतीय व्यापरियों और पुरोहितों के बढ़ते दबदबे से चीन में संरक्षण की सुगबुगाहट होने लगी। भारत के विदेशी व्यापार के विकास का आधार सबल जहाजरानी परंपरा थी जिसमे जहाज निर्माण और शक्तिशाली नौसेना के आलावा व्यापारियों की कुशलता और उद्द्यमशीलता का भी समावेश था।

तेरहवीं सदी में चीन सोने और चांदी के निर्यात पर प्रतिबन्ध लगाने का प्रयास किया,साथ ही 'मेरिनर कंपस ' (नाविक दिशा सूचक ) का सफल प्रयोग और चीन के जहाजों की विशालता से भारतीय जहाज उखड़ते चले गए ,क्योंकि चीन के जहाज अधिक बड़े और द्रुतगामी थे। 

पश्चिम दुनिया के साथ भारत के व्यापार में मंदी आयी तो दक्षिण पूर्व एशिया तथा चीन के साथ उसके व्यापार में धीरे-धीरे तेजी आती रही। व्यापार के क्षेत्र में दक्षिण भारत ,बंगाल,और गुजरात आगे रहे और यही क्षेत्र समृद्धि और सम्पत्ति का महत्त्वपूर्ण कारण था।

सामाजिक जीवन :- 


<> इस समय में समाज में एक वर्ग का अभ्युदय हुआ  जिसे समकालीन लेखकों ने सामंत ,राजपूत ( राणक ,राउत ) आदि उपनामों से अभिहित किया। इनमे से तो कुछ सरकारी ओहदेदार थे जिन्हे तनख्वाह की जगह राजस्वदायी गाँव दे दिए जाते थे। कुछ हारे हुए राजा और उनके समर्थक तथा कुछ स्थानीय वंशानुगत सरदार अपने सशक्त समर्थक की सहायता से छोटे - मोटे इलाकों में अपनी सत्ता हासिल कर ली थी। 

<> जनजातीय नेता ,गाँव के मुखिया कुछ कुलों के नेताओं हमेशा एक दूसरे से जूझते रहे ,और अपने प्रभाव क्षेत्र में वृद्धि करते रहे

<> राजा अपने अधिकारीयों और समर्थकों को दिए गए राजस्व् दान में मिलने वाली जागीर ,इन शासकों के अधिकारी राजस्वी इलाके को अपनी अपनी जागीरों को वंशानुगत मानते थे ,कालांतर में सरकारी अधिकारी भी वंशानुगत माने जाने लगे।

<>  वंशानुगत सरदार धीरे -धीरे न केवल राजस्व वसूलते थे बल्कि अधिकाधिक प्रशासनिक अधिकार भी हथियाने लग गए।  जैसे -अपने अधिकार से सजा देना , जुर्माना लगाना। साथ ही राजा की अनुमति के बिना अपने समर्थकों को जागीर में से उपजागीर देने लग गए ,इससे समाज में सरदारों द्वारा सामंती समाज का उदय देखने को मिलता है।

सामंती समाज ( फ्यूडल समाज ) - समाज के वह प्रभत्त्व वर्ग जो जमीन को जोतने बोन का काम न करते हुए भी उसी से अपनी जीविका प्राप्त करते थे।  इस व्यवस्था  में  फलने फूलने वाले समाज को सामंती समाज कहते हैं। 

सामंती समाज से हानि - 

<>इससे केंद्रीय शक्ति यानी राजा की स्थिति कमजोर हुई। 

<>सरदारों के पास सेनाएं होती थी,जिनका उपयोग राजा के खिलाफ भी होने लगा। 

<>तुर्क आक्रमण के समय ये आतंरिक कमजोरियां साबित हुई और काफी बर्बादी देखनी पड़ी। 

<>छोटे राज्य व्यापार के रास्ते में रुकावट डालते थे। और स्थानीय निर्भरता वाली आर्थिक गतिविधयों को प्रश्रय देते थे 

<>सामंती सरदारों के प्रभुत्व से ग्रामीण स्वशासन कमजोर पड़ा। 

सामंती समाज के लाभ -

<> सामंती सरदारों के प्रभत्व क्षेत्र में अशांति ,अव्यवस्था  के काल में भी स्थानीय लोगों की सुरक्षा  रही। 

<>  सम्बंधित क्षेत्र में लोगों के जान माल की सुरक्षा प्रदान की। 

<> सरदारों ने खेती बाड़ी के विस्तार और सुधार  दिलचस्पी ली ,जो केंद्रीय शासन में कम ही देखने को मिलती थी। 

<> वही व्यापार को प्रोत्साहन देते थे जिससे अधिकाधिक स्थानीय लोग आर्थिक गतिविधि में शामिल रहते थे।

लोगों की अवस्था 


<> दस्तकारियों ( कपडा बनाने ,सोने चांदी ,धातुकर्म का काम करने वाले ) के स्तर में इस काल में कोई गिरावट नहीं आयी। अरब यात्रियों ने भारतीय किसानों की कुशलता,जमीन की उर्वरता तथा कृषि के फलने फूलने की पुष्टि की। 

<> मंत्री ,अधिकारी, सरदार  और बड़े व्यापारी बहुत शानोशौकत से रहते थे ,वे राजा की नक़ल रिहायशी भवनों से लेकर पहनावे और यहाँ तक की उपाधियों से खुद को सुसज्जित करते थे। 

<> खाद्यसामग्री की प्रचुरता थी लेकिन नगरों में ऐसे बहुत से लोग थे जिन्हें पेटभर भोजन नहीं मिलता था था। बारहवीं सदी में लिखी गयी राजतरंगिणी ( कश्मीरी इतिहास ) में भी दरबारी और सामान्य लोगों के खाद्य सामग्री में अंतर से स्थिति को सामने रखा।

<> किसानों से राजस्व के तौर पर उपज के छठे हिस्से की मांग की जाती थी ,लेकिन इसके अतिरिक्त कई शुल्क जैसे -चरागाह कर ,तालाब कर ,दानपात्र आदि की जानकारी मिलती है।

<> सरदार हर मौके का लाभ उठाकर किसानों से कुछ न कुछ ऐंठते रहते थे ,इसके साथ ही आये दिन पड़ने वाले अकाल और बर्बाद कर देने वाली लड़ाइयों को जोड़ दीजिये तो आम लोगों के दुःख की व्यथा की तस्वीर पूरी हो जाती है।

लड़ाइयों के पश्चात जलाशय  जब्त ,अन्नागार में जमा अनाज जब्त ,नगरों का तहस नहस कर देना।  इन कृत्यों को तत्कालीन लेखकों ने उचित ठहराया , इस प्रकार सामंती समाज के विकास ने आम आदमी के सिर का बोझ बहुत बढ़ा दिया। 


जाती व्यवस्था :-


<> स्मृतिकारों ने ब्राम्हणों की विशेष स्थिति का अनुमोदन किया। इस काल में निम्न जातियों की निर्योग्यता में वृद्धि हुई , शूद्र की छाया व्यक्ति को दूषित करती है या नहीं ऐसे विषय भी विचार किये जाने लगे। 

<> अंतर्जातीय विवाह को हेय दृष्टि से देखा जाता था। उच्च जाती का लड़का तथा निम्न जाती की लड़की से विवाह करता था तो इस दाम्पत्यि की संतान जाती माता की जाती से निर्धारित होती थी। यदि लड़का निम्न जाती का होता था तो उसकी संतान की जाती उसी की जाती से तय होती थी। 

<> कारीगरों-दस्तकारों ( कुम्हार ,जुलाहा,सोनार ,गायक, नाई,चर्मकार,मछलीमार आदि। )  की श्रेणियां थी जो अब जातियां मानी जाने लगी ,तथा इनके धंधे को हीन समझा जाने लगा ,इस प्रकार ज्यादातर कारीगर -मजदूर और भील जैसी जनजातितों को अस्पृश्यों का दर्जा दे दिया गया। 

<> स्मृतिकारों के अनुसार शूद्र का भोजन ग्रहण करने से श्रेष्ठ व्यक्ति के पतित होने का जिक्र आया। यह कहना कठिन है की स्मृतियों के विधानों का पालन कहाँ तक किया जाता था। 

स्त्रियों की अवस्था :- 

<> आम तौर स्त्रियों को अविश्वास की दृष्टि से देखा जाता था। उन्हें सामाजिक जीवन से अलग रखा था और उनके जीवन का नियमन पुरुषों को करना होता था। 

<> भूमि के सम्बन्ध में सम्पत्तिक अधिकारों के विकास के साथ स्त्रियों के अधिकारों की भी वृद्धि हुई। परिवार की संपत्ति की रक्षा के लिए स्त्रियों को अपने पुरुष सम्बन्धियों की संपत्ति पर उत्तराधिकार दिया गया। विधवा की संपत्ति का उत्तराधिकार उसकी पुत्री को भी प्राप्त था। इस प्रकार सामंती समाज ने निजी संपत्ति की अवधारणा को मजबूत बनाया। 

<> अरब लेखक सुलेमान के अनुसार राजाओं की पत्नियां कभी - कभी सती हो जाती थीं लेकिन ऐसा करना न करना उनकी इच्छा पर निर्भर था। मालूम होता है की सामंती सरदार बड़ी संख्या में स्त्रियों को रखने लगे थे।  संपत्ति को लेकर विवाद छिड़ने लगे,और इससे सती प्रथा अधिक फैली। 

<> इस काल में भी पहले की तरह स्त्रियों को सामन्यतः मानसिक दृष्टि से हीन माना जाता था। उनका कर्त्तव्य आँख मूँद कर पति की आज्ञा का पालन करना चाहिए। उन्हें वेद पढ़ना इस काल में वर्जित रहा। इसके आलावा लड़कियों की विवाह की उम्र भी कम कर दी गयी,जिससे उच्च शिक्षा प्राप्त करने के रास्ते भी बंद हो गए। 

<>कुछ नाटकों से मालूम होता है की दरबारी स्त्रियों यहाँ तक की रानी की अनुचरियाँ भी संस्कृत और प्राकृत में उत्त्कृष्ट कवितायेँ लिख सकती थीं। कई कथाओं से ज्ञात होता है की राजकुमारियां,ललितकलाओं में खासकर चित्रकारी और संगीत में प्रवीण होती थी।

<> स्मृतियों के विधान अनुसार छः से आठ वर्ष की आयु से पहले विवाह कर दिए जाते थे ,कुछ परिस्थितियों में पुनर्विवाह की अनुमति थी जैसे - पति पत्नी को छोड़कर चला जाये और उसका पता न मिले , मृत्यु हो जाने पर ,नपुंशक हो ,जाती बहिष्कृत कर दिया गया हो या गृहत्यागी हो गया हो। 










स्रोत :- NCERT 












Sunday, March 22, 2020

जनता कर्फ़्यू का इतिहास और वर्तमान


जनता कर्फ़्यू 


यह जनता का,जनता के द्वारा लगाया गया खुद पर एक प्रचलित आंदोलन है। इतिहास में सामान्यतः इसका प्रयोग सरकार के खिलाफ होता आया है। 

चर्चा में क्यों :-


विश्वव्यापी घोषित महामारी कोरोना जिसने अब तक 186 देशों को अपने चपेट में लिया है ,वायरस COVID-19 जो भारत में भी दस्तक दे चुका है , सुरक्षा के मद्देनज़र भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 मार्च 2020 को देश के नाम सम्बोधन में इसका जिक्र किया है।


कैसा रहा इसका इतिहास :-


"अहमदाबाद-रॉयल सिटी टू मेगा सिटी " नमक किताब में कहा गया है की यह शब्द् ( जनता कर्फ्यू ) 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन से लिया गया है। दरअसल इसमें लोग अपने घर से बाहर न निकल कर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बहिष्कार करती है जिसके फलस्वरूप शहर के सेवाएं बंद हो गयी,तभी से इस तरह के विरोध प्रदर्शन को जनता कर्फ्यू कहा जाने लगा।

<>

इसके आलावा गुजरात -महाराष्ट्र के राज्य बनने से पहले बॉम्बे स्टेट हुआ करता था,लेकिन बंटवारे के दौरान बॉम्बे के मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई कच्छ के क्षेत्र को गुजरात को न देने की ज़िद में अड़े थे इसके लिए उन्होंने भूख हड़ताल में भी भाग लिया , इसी दौरान गुजरात के समाजसेवी इंदुलाल याग्निक ने " जनता कर्फ्यू " का आवाह्न किया और मोरारजी देसाई का समर्थन न करने एवं लोगों को घर में रहने की अपील की। वस्तुतः आंदोलन सफल हुआ ,और कच्छ का क्षेत्र आज गुजरात में है।


<>

 वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने राजनीतिक इतिहास में 1973-74 में तत्कालीन ABVP
 ( अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ) के प्रचारक के तौर पर गुजरात के उस समय के लोकप्रिय नवनिर्माण आंदोलन में सक्रिय भूमिका में थे ।

जुलाई 1973 में चिमनभाई पटेल मुख्यमंत्री बने,लेकिन कुछ ही माह दिसंबर 1973 में उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे तथा महंगाई बढ़ने से लोग सड़कों में उतर आते हैं,कई तरीके के विरोध प्रदर्शन होते हैं उन्हीं प्रदर्शन के दौरान "जनता कर्फ्यू " देखने को मिलता है।
अंततः गुजरात के राजनितिक इतिहास में यह आंदोलन काफी सफल माना जाता है क्योंकि तत्कालीन केंद्र की इंदिरा गाँधी  सरकार भी अपनी गुजरात सरकार बचा नहीं पाईं थी ,अंततः चिमनभाई पटेल को इस्तीफ़ा देना पड़ता है।

<> 

2013 में गोरखालैंड  की मांग के लिए एक संस्था "गोरखा जन मुक्ति मोर्चा " ने दार्जीलिंग ( पश्चिम बंगाल ) में 2 दिन का 'जनता कर्फ्यू 'का आव्हान किया था। जिससे आम नागरिकों को वस्तु और सेवाओं की काफी दिक्कत हुई।

निष्कर्ष :- 

यह विरोध का नायाब तरीका हो सकता है ,लेकिन संक्रमित वायरस जो मानव -से -मानव में बहुत जल्दी संक्रमित करता है ,उस हिसाब से इस तरीके को भीड़ कम करने , स्वास्थ सेवाओं में दबाव कम करने ,आर्थिक और नागरिक नुकसान कम करने का ये तरीका निश्चित ही उम्दा कदम कह सकते हैं।








Friday, March 20, 2020

19 वीं सदी के प्रमुख जनजातीय विद्रोह


◆प्रमुख जनजातीय विद्रोह 


● खोंड विद्रोह (1837-56 ,1914 )


. नेतृत्व - चक्र बिसोई 

. प्रभाव क्षेत्र :- उड़ीसा ,बंगाल और दक्षिण मध्य भारत 

. मुख्य कारण :- सरकार द्वारा नए करों को लगाना, उनके क्षेत्र में जमीदारों और साहूकारों को प्रवेश। खोंडों में जनजातीय रीति रिवाज़ों में हस्तक्षेप किये जाने के कारण विद्रोह 

<> 1837 से 1856 एवं पुनः 1914 में  विद्रोह हुआ ,लेकिन 1857 में दंडसेना को फांसी देने के बाद यह आंदोलन समाप्त हो गया। 

●कोल विद्रोह ( 1831-32 )


. नेतृत्व :- बुद्धो भगत 

. प्रभाव क्षेत्र :- छोटा नागपुर का भू-भाग ( झारखंड )

. मुख्य कारण :- अंग्रेज़ों द्वारा उस क्षेत्र में प्रसार ,जमीदारों और ठेकेदारों द्वारा भूमि कर बढ़ाना ,छोटा नागपुर के राजा द्वारा स्थानीय आदिवासियों के बजाय दिकुओं ( बाहरी लोगों ) को भूमि देना। 

<>  बुद्धो भगत की मृत्यु और सैन्य अभियान से ही यह आंदोलन शांत किया जा सका ,एवं शांति पुनः स्थापित की जा सकी। 

●संथाल विद्रोह (1855-56 )


नेतृत्व :- सिद्धो और कान्हू 

प्रभाव क्षेत्र :- बिहार ( संथाल परगना )

प्रमुख कारण :-  संथालों (कृषि  करने वाली जनजाति ) के निरंतर दमन ने जमीदारों जिन्हें पुलिस का समर्थन प्राप्त था ,के विरूद्ध संथालों के विद्रोह को जनम दिया। 

<>  विद्रोहियों ने भागलपुर तथा राजमहल के बीच स्वायत्त क्षेत्र घोषित किया,फलस्वरूप 1856 में ब्राउन और जनरल लॉयड ने  विद्रोह का दमन कर दिया। 1856 में ही पृथक संथाल परगना की स्थापना हुई। 

●मुंडा विद्रोह ( 1899 - 1900 )

नेतृत्व :- बिरसा मुंडा 

प्रभाव क्षेत्र :- छोटा नागपुर 

प्रमुख कारण :- खूंटकट्टी ( सामूहिक भूमि-स्वामित्त ) आधारित जनजातियों की कृषि व्यवस्था पर जमीदारों का कब्ज़ा,व्यापारियों  साहूकारों द्वारा आर्थिक चोट ,ईसाई  मिशनरियों द्वारा सामजिक पद्धत्ति पर चोट होने का परिणाम था। 

<> इसे "उलगुलान विद्रोह" के रूप में जाना जाता है,

<> फरवरी 1900 में बिरसा मुंडा को सिंहभूमि में गिरफ्तार कर रांची जेल में डाल दिया , विद्रोह का दमन कर दिया गया। 

●खासी विद्रोह ( 1827-33 )


नेतृत्व :-  तीरथ सिंह

प्रभाव क्षेत्र :- जयंतिया और गारो पहाड़ियों के बीच का क्षेत्र

प्रमुख कारण :- ईस्ट इंडिया कंपनी के द्वारा पहाड़ी क्षेत्र में बाहरी लोगों के हस्तक्षेप से खासी, गारो ,खंपतिस्,एवं सिंगफोस जातियों का विद्रोह परिणाम था।

<> 1833 में इसे सैन्य कार्यवाही द्वारा इसे दबा दिया गया।


●रामोसी विद्रोह ( 1822,1825-26 ,1839-41 )


. नेतृत्व :- चित्तर सिंह और नरसिंह दत्तात्रेय पेतकर 

. प्रभाव क्षेत्र :- पश्चिम घाट ( महाराष्ट्र ) 

. प्रमुख कारण :- अंग्रेज़ों का साम्रज्यवादी आर्थिक शोषण,अकाल और भूख की समस्या। 


●रम्पा विद्रोह ( 1922-24 ) 

. नेतृत्व :- अल्लुरी सीताराम राजू 

. प्रभाव क्षेत्र :- गोदावरी नदी नदी के पहाड़ी  क्षेत्र के उत्तर में अर्द्ध -आदिवासी रम्पा क्षेत्र 

. प्रमुख कारण :- व्यापारी, साहूकार का शोषण,झूम कृषि पर रोक,वन विभाग कानून जो आदिवासियों की चराई सम्बन्धी अधिकार को समाप्त करना था। 

<> विद्रोह में गोर्रिल्ला युद्ध नीति का अनुशरण किया गया। 

<> सितम्बर 1924 में सीताराम राजू के मरते ही आंदोलन समाप्त हो गया। 









Tuesday, March 17, 2020

केंद्र-राज्य संबंध


केंद्र राज्य संबंध :-


केंद्र राज्य सम्बन्ध से अभिप्राय है किसी लोकतान्त्रिक देश में संघवादी केंद्र और उसकी इकाइयों के बीच के आपसी सम्बन्ध से है। भारतीय संविधान में भारत 'राज्यों का संघ 'कहा गया है न की संघवादी राज्य। भारतीय संविधान द्वारा विधायी ,प्रशासनिक और वित्तीय शक्तियों का स्पष्ट बंटवारा केंद्र  राज्यों के बीच किया गया है। 

a . विधायी सम्बन्ध -( अनुच्छेद 245 - 255 )

b .प्रशासनिक सम्बन्ध -( अनुच्छेद 256 -263 )

c. वित्तीय सम्बन्ध -(अनुच्छेद 268 -293 )


 विधायी सम्बन्ध :-


संविधान के भाग 11 में अनुच्छेद 245 से 255 तक केंद्र और राज्यों के विधायी संबंधों की चर्चा की गयी है,केंद्र राज्य संबंधो के मामले में चार स्थितियाँ है :-

<> केंद्र एवं राज्य विधान के सीमांत क्षेत्र

<> विधायी विषयों का बंटवारा।

<> राज्य क्षेत्र में संसदीय विधान

<> राज्य विधान पर केंद्र का नियंत्रण।

अनुच्छेद 245  :- संसद भारत के सम्पूर्ण क्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए कानून बना सकती है और राज्य के विधानमंडलों द्वारा बनायीं गयी विधियों का विस्तार करने का अधिकार है। ये कानून भारतीय नागरिकों एवं विश्व में स्थित उनकी किसी भी संपत्ति पर भी लागू होता है।

अनुच्छेद 246 : इसके अंतर्गत विधायी सम्बन्धो में त्रि-स्तरीय  व्यवस्था की गई है।

संघ सूची :- विषय 100 ( पहले मूलतः 97 थे ) कानून बनाने की संसद की विशिष्ट शक्ति होती है

राज्य सूची  :- विषय 61 ( पहले 66 थे ) कानून बनाने का अधिकार सामान्य परिस्थितियों में राज्य विधानमण्डल का होता है।

समवर्ती सूची :-विषय 52 ( मूलतः 47 ) इस पर संसद और राज्य दोनों विधान बना सकती हैं।

अनुच्छेद 247 :- कुछ अतिरिक्त न्यायालयों की स्थापना का उपबंध करने की संसद की शक्ति

अनुच्छेद 248 :- अवशिष्ट विधायी शक्तियां। संसद को ऐसे विषय पर कानून बनाने का अधिकार जो तीनों सूची में नहीं आते।

अनुच्छेद 249 :- यदि राज्य सभा यह घोषित करे की राष्ट्रहित में राज्यसूचि के मामले में मामले में संसद को कानून बनाना चाहिए तो संसद कानून बना सकती है , उपस्थित सदस्यों के 2 / 3 समर्थन मिलना चाहिए और यह कानून 1 वर्ष तक प्रभावी रहेगा  और इसे असंख्य बार बढ़ाया जा सकता है।

अनुच्छेद 250 :- संसद राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान राज्य सूची के मामलों की शक्तियां अभिग्रहित कर लेती है तथा आपातकाल के बाद यह व्यवस्था 6 माह तक प्रभावी रहती है।

अनुच्छेद 251 :-राज्यों को अनुच्छेद 249 और 250 के अंतर्गत बनी विधियों के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार तो है परन्तु केंद्रीय कानून से संघर्ष की स्थिति में केंद्रीय कानून प्रभावी होगा।

अनुच्छेद 252 :- दो या दो से अधिक राज्य विधानमंडल यह प्रस्ताव पारित करें की राज्य सूची पर संसद कानून बनाये तो संसद उस मामले में कानून बना सकती है। यह कानून उन्हीं राज्यों पर प्रभावी होगा जिन्होंने यह प्रस्ताव भेजा है। कोई अन्य राज्य चाहे तो यह प्रस्ताव को पारित कर इसे लागू कर सकता है।

अनुच्छेद 253 :- संसद,राज्य सूची के विषय पर अंतर्राष्ट्रीय संधि और समझौतों पर कानून बना सकती है।

अनुच्छेद 254 :- राज्य विधान मंडल एवं संसद द्वारा बनाये गए कानून में विसंगति आती है तो संसद द्वारा बनाया गया कानून प्रभावी होगा।

अनुच्छेद 255 :- सिफारिशों और पूर्व मंजूरी के बारे में अपेक्षाओं को केवल प्रक्रिया के विषय मानना।

प्रशासनिक संबंध :- 

 संविधान के भाग 11 में अनुच्छेद 256 से 263 तक केंद्र व राज्य के बीच प्रशासनिक संबंधो की व्याख्या की गयी है। -

अनुच्छेद 256 :- 
राज्य को अपनी कार्यपालिका शक्ति का इस प्रकार प्रयोग करना होगा की संसदीय कानून का पालन हो सके। केंद्र ,राज्य को निम्न मामलों में निर्देश जारी कर सकता है --( आर्टिकल 257 के अनुशार )

. संचार साधनों को बनाये रखना एवं रखरखाव
. राज्य में रेलवे संपत्ति की रक्षा।
. प्राथमिक शिक्षा की स्तर पर राज्य भाषायी अल्पसंख्यक के बच्चों हेतु मातृभाषा सीखने की व्यवस्था करें।
. राज्य अनुसूचित जनजातियों के कल्याण हेतु विशेष योजना बनाकर क्रियान्वयन करें।

अनुच्छेद 257 :- राज्य अपनी कार्यपालिका शक्ति का इस प्रकार पालन करें की केंद्रीय कार्यपालिका शक्ति में बाधा उत्पन्न ना हो।

अनुच्छेद 258 :- राष्ट्रपति द्वारा,राज्य की सहमति पर केंद्र के किसी कार्यकारी कार्य को उस राज्य को सौंप सकता है। इसी तरह राज्यपाल केंद्र की सहमति से राज्य के कार्य को कराता है।--

<> अखिल भारतीय सेवाओं की नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाती है।  इन पर पूर्ण नियंत्रण केंद्र का एवं तात्कालिक नियंत्रण राज्य का होता है।

<> राज्य लोक सेवा आयोग ,संयुक्त राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल करता है किन्तु उन्हें सिर्फ राष्ट्रपति द्वारा ही हटाया जा सकता है।

<> राज्य के राज्यपाल एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति भी राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

<> आपातकाल के दौरान संपूर्ण देश का प्रशासन केंद्र के पास होता है।

अनुच्छेद 355 :- केंद्र ,बाह्य आक्रमण एवं आंतरिक अशांति से प्रत्येक राज्य की रक्षा और यह सुनिश्चित करना की प्रत्येक राज्य की सरकार संविधान के अनुरूप कार्य कर रही है या नहीं।


अनुच्छेद 259: - पहली अनुसूची के भाग-बी में राज्यों में सशस्त्र बल  ( निरस्त 7 वां संशोधन )

अनुच्छेद 260: - भारत के बाहर के राज्य क्षेत्रों के  सम्बन्ध में संघ की अधिकारिता

अनुच्छेद 261:- सार्वजनिक कार्य ,अभिलेख और न्यायिक कार्यवाहियां

अनुच्छेद 262:- अंतर्राज्यीय नदियाँ या नदी दूनो के जल सम्बन्धी विवादों का न्यायनिर्णयन

अनुच्छेद 263:- अन्तर्राज्यीय परिषद के सम्बन्ध में उपबंध।







Wednesday, March 4, 2020

उत्तराखंड बाढ़ 2013


◆उत्तराखंड बाढ़ :-


भारत के उत्तराखंड राज्य में 2013 में आई विनाशकारी बाढ़ ने विनिर्माण क्षेत्र के निर्माण कार्य को नए सिरे से सोचने के लिए मजबूर कर दिया था। उत्तराखंड राज्य का ऊपरी हिमालयी क्षेत्र वनों और हिम से आच्छादित है। इसी क्षेत्र में केदारनाथ और बद्रीनाथ जैसे महत्त्वपूर्ण हिन्दू तीर्थ स्थल भी हैं यहाँ वर्ष 2013 में 14 -17 जून तक इतनी घनघोर वर्षा हुई की इसने विनाशकारी बाढ़ का का रूप धारण कर लिया। इस भयानक आपदा में 5000 से ज्यादा लोग ने अपनी ज़िंदगी गवां दी तथा हज़ारों लोग बेघर हो गए। इसका प्रभाव हिमाचल प्रदेश  और पश्चिम नेपाल तक हुआ।

◆उत्पत्ति :-



<>  14 -17 जून 2013 को उत्तराखंड राज्य में हुई अचानक मूसलाधार बारिश 340 मिलीमीटर दर्ज की गयी जो सामान्य बेंचमार्क ( 65.9मिमी ) से 375 प्रतिशत ज्यादा होने से बाढ़ की स्थिति उत्त्पन्न हुई।

<>उत्तरकाशी में बादल फटने के बाद अस्सीगंगा और भागीरथ में जल स्तर बढ़ गया।

<> गर्मियों के दौरान बर्फ पिघलने से जून के महीने में सामान्यतः यहाँ का मौसम नम रहता है। जिससे बाढ़ का विकराल रूप बनने में सहायक की तरह काम किया।

<> चोराबरी हिमानी पिघलने से मंदाकनी नदी में बाढ़ की स्थिति

◆प्रभावित क्षेत्र :-  



<>  नेपाल की महाकाली और धौलीगंगा वाले क्षेत्र में व्यापक नुकसान हुआ ,इक रिपोर्ट के अनुशार 1500 से ज्यादा लोग बेघर ,125 घर और 15 सरकारी कार्यालय बह गए।

<> दिल्ली और NCR क्षेत्र में और यमुना नदी के निचले क्षेत्रों में जल प्रवाह 207.75 मीटर से ऊपर पहुँच गया जो एक नया रिकॉर्ड बना।

<> हिमाचल प्रदेश और उत्तरप्रदेश  में बाढ़ से जीवन और संपत्ति का काफी नुकसान हुआ।


हालाँकि भारतीय मौसम विज्ञान ने भारी वर्षा का पूर्वानुमान जताया था लेकिन मौसम विभाग की चेतावनी को आम जनता के बीच प्रसारित नहीं किया गया किया गया। भारी वर्षा के कारण बाढ़ और भू-स्खलन दोनों का सामना करना पड़ा। ऐसे में कई स्थानों पर यात्रीगण और स्थानीय निवासी फंस गए। केदारनाथ मंदिर का  भी निचला भाग क्षतिग्रस्त हो गया।

चोराबारी हिमानी पिघलने  नदी में बाढ़ की स्थिति बनने से गोविंदघाट और केदारनाथ मंदिर के आस पास का क्षेत्र जलप्लावित होने लगा जिससे कई होटल कई होटल बाढ़ से क्षतिग्रस्त हुए।

उल्लेखनीय  है की उत्तराखंड में आयी बाढ़ को हम सामान्यतौर पर प्राकृतिक आपदा की संज्ञा दे दें लेकिन इससे भी नहीं बचा जा सकता की इस  आपदा के लिए बहुत सीमा तक मानवीय क्रियाकलाप भी दोषी हैं।

●जैसे :-

><  पर्यटन में अनियंत्रित वृद्धि 

><बिना जांच-परीक्षण के सड़कों ,होटलों दुकानों में वृद्धी  

><अनियोजित भवन निर्माण आदि के कारण भू-स्खलन जैसी स्थिति उत्पन्न हुई। 

>< जलविद्युत्त परियोजनाओं में वृद्धि के कारण भी जल संतुलन बाधित हुआ। 



इस त्रासदी से निपटने के लिए भारतीय थल सेना ,वायु सेना ,नौ सेना,ITBP ,SSB ,लोक निर्माण विभाग ,NDRF ,स्थानीय प्रशासन सभी ने एकजुट होकर कार्य किया इससे स्थिति पर नियंत्रण पाने का प्रयास किया गया । इसके अतिरिक्त देशवाशियों ने भी बाढ़ पीड़ितों की सहायता के लिए खोले गए विभिन्न शिविरों में खाद्य सामग्री एवं नकद राशि का योगदान दिया।



Friday, February 28, 2020

World Health Organisation

World Health Organisation

The World Health Organization (WHO) is a specialised agency of united nations whose primary role is to direct and coordinate international health within the United Nations system. Its predecessor, the Health Organisation, was an agency of the League of nations.
 ◆ ESTABLISHMENT :

The World Health Organization was established in 1948,
serving as the directing and coordinating authority for international health matters and public health.
The constitution of the World Health Organization was signed by all 51 countries of the United Nations, and by 10 other countries, on 22 July 1946. It thus became the first specialized agency of the United Nations to which every member subscribed. Its constitution formally came into force on the first World Health Day on 7 April 1948, when it was ratified by the 26th member state.


FUNCTION:

● Its initial priorities were malaria, tuberculosis, venereal disease and other communicable diseases, plus women and children’s health, nutrition and sanitation.

With changing scenario it's area expanded over all health issues and covered more area of health and wellness .
Their main areas of work are:
● health systems; 
●health through the life-course; ●noncommunicable and communicable diseases; preparedness, surveillance and response; and corporate services, etc.
●The WHO is responsible for the World Health Report ,the worldwide World Health Survey, and World Health Day. 
●It acts as a safeguard of all the worlds health issues .
●In terms of health services, WHO looks to improve "governance, financing, staffing and management" and the availability and quality of evidence and research to guide policy. 

HEADQUATER:

The headquarter of WHO is in Geneva, Switzerland.

MEMBERS :
The WHO has 194 member states: all of the Member States of the United Nations except for Liechtenstein, and the Cook Islands and Niue.

◆◆The current Director-General is Dr. Tedros Adhanom Ghebreyesus, who was appointed on 1 July 2017.(for 5 year term )

Wednesday, February 26, 2020

कच्छ भूकंप (भुज)- 2001

कच्छ भूकंप



भारत के गुजरात राज्य में स्थित भुज जिले में समुद्र तटीय क्षेत्र में देश के 51 वें  गणतंत्र दिवस की सुबह 8:46 , बजे हुआ और 2  मिनट से अधिक समय तक भूकंप के तेज़ झटके महसूस हुए। भारतीय मौसम विभाग अनुसार रिक्टर  पैमाने पर इस भूकंप की तीव्रता 6.9 थी।

●प्रभाव क्षेत्र :-

इस भूकंप का अधिकेंद्र कच्छ के मुख्यालय भुज से लगभग 20 किमी उत्तर -पूर्व में था। इसका प्रभाव भारत के  व्यापक क्षेत्र में तथा पड़ोसी देशों पाकिस्तान ,नेपाल में भी महसूस किये गये। इस प्राकृतिक आपदा के कारण जहाँ एक ओर हजारों लोगों की मृत्यु हो गयी तथा निकटतम शहरों जैसे अहमदाबाद ,राजकोट ,जामनगर ,पाटन में कई भवन क्षतिग्रस्त हो गए ,वहीं कच्छ क्षेत्र के भवनों आदि का तो पूरी तरह विध्वंश हो गया। इस त्रासदी का प्रभाव गुजरात की अर्थव्यवयस्था ,जनांकिकी और श्रम बाजार पर भी पड़ा।

 विदित है की कच्छ का प्रभावित क्षेत्र पूर्व में भी भूकम्पीय गतिविधियों से युक्त रहा। यह क्षेत्र भारत के भूकंपीय क्षेत्रों के पांचवे जोन पड़ता है ,यही एकमात्र ऐसा जोन है जो हिमालयी भूकंपीय बेल्ट से बाहर स्थित है। प्रसंगवश इस क्षेत्र में 2001 की ही तरह 1819 ,1844 ,1845 ,1869,1956 में भी भूकंप आये थे।

●आकलन :-

एशियाई विकास बैंक और विश्व बैंक के कच्छ भूकंप आकलन मिशन ने फरवरी 2001 में गुजरात का दौरा किया और पाया की लगभग 99 बिलियन रूपए का नुकसान  हुआ था ,इस त्रासदी में 13805 से 20,023 के लगभग लोगों की जानें गयी। 167,000 घायल और 3 लाख भवन क्षतिग्रस्त होने का आकलन लगाया गया।

●अन्य :-
★स्मृतिवान ,एक मेमोरियल पार्क बनाया गया है जिसमे इस भूकंप आपदा में जिन्होंने अपनी जान खोयी उनकी याद में 13,823 पेड़ लगाए गए।

★इस भूकंप के कारण आयी त्रासदी ने आभास दिलाया की गुजरात में भवनों की संरचना में कई तकनीकी खामियां थी। यदि इन्हे भूकंपरोधी बनाया जाता तो संभवतः जान माल की कम हानि होती। बहरहाल भूकंप पीड़ितों की सहायता करने के लिए भारतीय सेना के साथ साथ अंतर्राष्ट्रीय रेडक्रॉस सोसाइटी ने भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया

इस आपदा ने भारत सरकार की आपदा पूर्व तैयारी की पोल खोल दी ,मीडिया और आम लोगों द्वारा सरकार पर दबाव बना जिसके प्रभाव में 2005 में NDMA ( National Disaster Management Act ) के रूप में देखा।





Sunday, February 23, 2020

Election Commission of India

The election commission is a permanent and an independent body (formed on 25 January 1950) established by Constitution of India under article 324 which is responsible for administering election processes in India at national, state and district level. 
On the other hand it must be noted that election commission is not responsible for conducting elections of Panchayat and municipalities in the States as for that constitution provides for setting up of separate state election commission .


◆COMPOSITION :
The composition of state election commission is given in article 324 of the Constitution which states that it will consist of :

The Chief Election Commissioner and the two election commissioners who are usually retired IAS officers.
The appointment of the chief election commissioner and other election commissioner shall be made by the president .
When any other election commissioner is so appointed , the chief election commissioner shall act as the chairman of the commission .

◆TENURE :
The term of service of the office of election commission shall be determined by the president .
The election commission and other election commissioners hold office for a term of six years or until they attain the age of 65 years ,whichever is earlier .

They can resign anytime or can also be removed before the expiry of their term .

 ◆SALARY:
The chief election commissioner and the two other election commissioners have equal powers and recive equal salary ,allowances and other perquisites as per the judges of supreme court .



◆◆HOW IS ELECTION COMMISSION INDEPENDENT ??

To ensure fair and impartial elections in the country the commission is granted some independency to perform it's duties up to mark so that any outside powers cannot affect the working of the election commission .
The following provisions ensure it's independency :--

CONSTITUTIONAL POWER :
Article 324 of the Constitution provides EC the power to conduct control and direct effective elections throughout the country .

◆SECURITY OF THE TENURE :-
The chief election commission is provided security of its tenure as he cannot be removed from his office except in same manner and on the same grounds as judge of supreme court .
Other election commissioners of the regional commissioner cannot be removed from his office except on the recommendation of the chief election commissioner .

◆POWERS & FUNCTIONS :-

  • Article 324: Superintendence, control and direction of national and state level elections are to be directly handled by the ECI
  • Article 325: Inclusion and exclusion of names in electoral rolls are based on Indian Citizenship. No citizen of India above the voting age should be excluded from the rolls or included in a special electoral roll based on any criteria such as race, caste, religion or sex.
  • Article 326: Defines universal adult franchise as the basis for elections to all levels of the elected government.
  • Article 327: Defines responsibilities of the ECI and parliament for the conduct of national elections.
  • Article 328: Defines the role and responsibilities of the state legislatures with respect to state level elections.
  • Article 329: Prohibits court interference in matters related to elections unless specifically asked to provide their views.
 ◆◆The powers and functions of the election commissioner can be classified into three categories :-
◆Adminstrative 
◆Advidory 
◆Quasi-judicial

◆◆Administrative powers;

●To determine the territorial areas of the electoral constituencies throughout the country on the basis of the Delimitation Commission Act of the parliament .
●To register all eligible voters and notify dates and schedules of the elections and to scrutinise nomination papers .
●To recognize political parties and allot election symbols to them and grant them status of notional or state parties on basis of their poll performance .
●To appoint officers for inquiring into disputes relating to electoral arrangements.
●To determine code of conduct to be observed by the political parties and the candidates at the time of elections.

◆JUDICIAL POWERS :--

●EC can cancel polls in the event of rigging ,booth capturing , violence and other illegal activities .
●Can act as Court of settling disputes related to recognition of political parties and allotment of election symbols to them .
ADVISIORY POWERS :--

●EC can advice president on matters relating to disqualification of Members of parliament.
●EC advices governors on matters relating to the disqualification of the members of state legislature.


Thus we can say that election commission safeguards the conduction of free and fair elections in India .

Thursday, February 20, 2020

भोपाल गैस त्रासदी :एक भयंकर औद्योगिक दुर्घटना


भोपाल गैस त्रासदी :-

 भारत के मध्य प्रदेश राज्य के भोपाल शहर में 3 दिसंबर 1984 को एक भयानक औद्योगिक दुर्घटना हुई। इसे भोपाल गैस कांड या भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है।

◆◆कैसे हुआ ?:-

भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड ( UCIL ) की कीटनाशक फैक्टरी से जहरीली गैस मिथाइल आइसो सायनेट(MIC )के रिसाव रिसाव होने के कारण समूचा भोपाल इसका शिकार हो गया।

गैस के रिसाव के कारण को लेकर आज भी विवाद बना हुआ है। भारत सरकार का तर्क रहा है की लापरवाह प्रबंधन तथा बेतरतीब रख-रखाव के कारण MIC टंकी में पानी  विपरीत प्रवाह होने लगा ,जिससे आपदा हुई। साथ ही UCIL ने यह दावा किया की तोड़-फोड़ किये जाने के कारण टंकी में पानी घुसा और घटना हुई।

स्थानीय पत्रकारों की रिपोर्ट के अनुसार में सुरक्षा के लिए रखे गए सारे मैनुअल अंग्रेजी में थे जबकि कारखाने में काम करने वाले ज्यादातर कर्मचारियों को अंग्रेजी का बिलकुल ज्ञान नहीं था साथ ही पाइप की सफाई करने वाले हवा के वेन्ट में भी काम करना बंद कर दिया था।

◆◆प्रभाव :-


MIC का प्रसार 3 दिसंबर की पहली सुबह तक पूरे भोपाल में फ़ैल गया ,फलस्वरूप वातावरण में  मिश्रण से लोगों को सांस लेने में कठिनाई होने लगी। आँखों पर दुष्प्रभाव पड़ा ,फेफड़े ,मस्तिष्क मांसपेशियों और साथ ही तंत्रिका तंत्र ,प्रजनन तंत्र पर इस गैस का दुष्प्रभाव पड़ा।
इस त्रासदी में 10000 से भी अधिक लोगों की मृत्यु ही गयी तथा 5 लाख से भी ज्यादा लोगों का शरीर पीड़ादायक घावों से ग्रस्त हो गया।

दुर्घटना के 4 दिन बाद 7 दिसंबर 1984 को UCIL के अध्यक्ष और CEO वारेन एंडरसन  की गिरफ्तारी हुई लेकिन 6 घंटे बाद उन्हें $2100 के मामूली जुर्माने पर मुक्त कर दिया गया।

इस त्रासदी के शिकार केवल वो लोग नहीं हुए जो घटना के दौरान भोपाल में थे बल्कि इस गैस का संक्रमण कई वर्षों तक रहा जिसका प्रभाव संभव आज भी है। घटना को त्रासदी में बदल जाने का मूल कारण यह था की इस जहरीली गैस के बारे में पूरी जानकारी नहीं थी ,और इसके प्रतिविष (Antidote ) के बारे में लोग अनजान थे,सरकार को इस रसायन और निपटने के उपचार  जानकारी होती तो प्रभाव को काम किया जा सकता था। लेकिन 2014 तक भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने यही कहा की भोपाल त्रासदी का वास्तविक कारण अभी भी अज्ञात है।

 त्रासदी के 35 साल बाद भी सरकार UCIL की पैतृक कंपनी यूनियन कार्बाइड कारपोरेशन ( UCC ) और इसके खरीददार डाउ केमिकल पर त्रासदी की जवाबदेहिता आरोपित करने से कतराती रही है ,वहीं दूसरी ओर गैस त्रासदी से पीड़ित परिवार आज भी वांछित मुआवजे के मांग कर रहे हैं।

Wednesday, February 19, 2020

औद्योगिक क्रांति


औद्योगिक क्रांति :-


18वीं  सदी के मध्य में तथा 19 वीं सदी में पश्चिम देशों के तकनीकी ,आर्थिक एवं सामाजिक प्रक्रिया में आमूलचूल परिवर्तन को ही औद्योगिक क्रांति  कहा जाता है। 

औद्योगिक क्रांति शब्द का सबसे पहले आरनोल्ड टायनबी ने अपनी पुस्तक "लेक्चर्स ऑन दि इंडस्ट्रियल रेवोलुशन रिवोल्युशन " में 1844 में किया था।
इसकी शुरुआत वस्त्र उद्योग के मशीनीकरण के साथ इंग्लैंड से हुई।

 इसके क्रमिक विकास को दो चरणों में विभाजित कर सकते हैं ----

<>प्रथम चरण (1760 -1830 ) :- इस समय में विभिन्न अविष्कार व कारखाना पद्धत्ति का विकास हुआ।

<>द्वितीय चरण ( 1830 - 1914 ):- औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि ,विविधता जटिलता और यातायात व व्यापारिक क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन।

◆◆औद्योगिक क्रांति की शुरुआत इंग्लैंड से ही क्यों हुई ?----             


<>विस्तृत औपनिवेशिक साम्राज्य :- 


इंग्लैंड का विस्तृत औपनिवेशिक साम्राज्य रहा जिससे कच्चे माल की सुविधा तथा नवीन बाजार निर्यात के लिए उपयोग हुआ। जैसे - भारत से कपास आयात कर निर्मित कपड़े को भारत को ही निर्यात किया जाता रहा।

<>समुद्री व्यापार पर एकाधिकार :-


इंग्लैंड की रॉयल नेवी तत्कालीन समय की सबसे मज़बूत नौ सेना थी। जिससे समुद्र में एकाधिकार बना रहा।

<>मांग के अनुरूप उत्पादन :- 

इंग्लैंड में वस्तुओं के उत्पादन मांग के अनुरूप थी। बहुत कम समय में सामान को उपलब्ध करा देता था। जबकि अन्य यूरोपीय देश काफी वक्त लगा देते थे।

<>पूँजी उपलब्धता:-

 वाणिज्यवाद के दौरान अत्यधिक धन संग्रहण किया एक ओर इंग्लैंड के व्यापारियों ने भारत जैसे उपनिवेशों से उच्च लाभ अर्जन किया वहीँ दूसरी ओर इंग्लैंड के समजवादी विद्वानों ने सदा जीवन ,कम खर्च उच्च बचत पर बल व निवेश को प्रोत्साहित किया।

<>कृषि क्रांति :- 

औद्योगिक क्रांति से पहले कृषि क्रांति हुई जिसके फलस्वरूप सीमांत व लघु कृषक बेकार ,बेरोजगार होकर शहरों की तरफ पलायन करके आ गए जिससे उद्योग की मजदूर समस्या खत्म हुई ,और व्यापर में गति प्रदान किया।

<>अनुकूल भौगोलिक स्थिति :-

इंग्लैंड शेष संसार से पृथक भौगोलिक स्थिति रही जिससे युद्ध व अशांति -हानियों से बचा रहा ,या बाहरी प्रभाव को व्यापर में नहीं पड़ने दिया।

<>शांति व्यवस्था :-

 तत्कालीन प्रधानमंत्री वॉलपॉल की कुशल नीति से राजनीतिक व वित्तीय स्थायित्व बढ़ा ,जबकि यूरोप के अन्य देश गृहयुद्धों में उलझ गए।

<>लोहा-कोयला की पर्याप्त उपलब्धता  :-

किसी भी कारखाने के आधारभूत ढांचे और ऊर्जा के लिए लोहा व कोयला की जरूरत पड़ती है ,यह इंग्लैंड में बहुतायत में पाया जाता रहा।


इंग्लैंड का मुक्त समाज ,वैज्ञानिक अविष्कारों को प्रोत्साहन देना तथा अर्ध कुशल कारीगरों की उपलब्धता आदि कारक इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के शुरू होने का कारण बना।

औद्योगिक क्रांति के प्रभाव :

इतिहासकार विल ड्यूरा  ने कहा   
" मानव समाज के इतिहास में दो प्रसिद्द क्रांतियाँ हुई ,पहली आखेट छोड़कर कृषि व पशुपालन करना वहीँ दूसरी कृषि छोड़कर व्यवसाय को अपनाना "

आर्थिक प्रभाव :-

औद्योगिक क्रांति के पहले चरण में 1815 तक आते आते इंग्लैंड को विश्व की वर्कशॉप ,विश्व की भट्ठी ,विश्व का बैंक कहा जाने लगा।

<> कुटीर उद्योग ,कारखाना पद्धत्ति में परिवर्तित  होने लगा तथा उत्पादन में बेहद वृद्धि हुई।

<> सन 1700 में जहाँ ग्रामीण जनसँख्या 77 % थी  वहीं 1900 में केवल 20 % बची और अर्थव्यवस्था का आधार शहर हो गया।

<> राष्ट्रीय उत्पादन व संरक्षणवाद को महत्व दिया गया ,जिससे अन्य देशों की वस्तुओं पर भारी कर लगाया गया।

<> औद्योगिक क्रांति ने विश्व को कई भयानक मंदियाँ दी -1825,1837 ,1867 ,1900 ,1929 आदि।

<>औद्योगिक पूंजीवाद का जन्म दिया ,कारखाना माल सस्ता होने से घरेलु उद्योग धंधे चौपट हो गए।

<> इंग्लैंड की औद्योगिक प्रगति के कारण ही नेपोलियन ( फ्रांस ) वाटरलू का युद्ध जीत न सका। कहा जाता है की वाटरलू का युद्ध तो इंग्लैंड ने पहले ही लंकाशायर के सूती मिलों में जीत लिया था।

◆◆सामाजिक प्रभाव :-

<> श्रमिकों की स्थिति पहले से अधिक दयनीय हो गयी ,कार्य समय बढ़ा ,तथा अवकाश नहीं दिया जाता था।

<> 14 -16 घंटे कार्य करने के वावजूद ,श्रमिक संपत्ति विहीन,मुद्राविहीन ,गृहविहीन ही बने रहे।

<> संयुक्त परिवार की प्रथा को आघात लगा।

<> आर्थिक विषमता बढ़ने के साथ ही दो नए वर्ग श्रमिक व पूंजीपति का उद्भव हुआ।

<> जनसँख्या में गुणात्मक वृद्धि हुई।

<> 18वीं  सदी के मध्य से 19वीं सदी के अंत तक जनसँख्या में तीन गुना वृद्धि हुई जिससे नयी बीमारियों की बढ़ोतरी हुई जिसके फलस्वरूप चिकित्सक खोजें होने लगी।

<>कृषि क्रांति आने से लोगों के पोषण में सुधार हुआ।

<> नये औद्योगिक वर्गों के आने से स्वच्छ जल ,वायु ,स्वास्थ जैसे मूलभूत अधिकारों की मांग होने लगी।

<>  महिलाओं के अधिकारों की शुरुआत वुल्सटनक्राफ्ट तथा जॉन स्टुअर्ट ने किया।

<> मजदूरों की दशा सुधरने व जान कल्याण के लिए समाजवाद का जनम हुआ।


◆◆राजनीतिक प्रभाव :-

<> औद्योगिक क्षेत्र के व्यापक होने से राज्यों के प्रशासकीय कार्यों में वृद्धी हुई।

<> श्रमिकों की दशा सुधारने व् बाल श्रमिकों से सम्बंधित कई कानून लाये। अकेले 19वीं सदी में 40 से अधिक फैक्टरी अधिनियम पारित हुए।

<> राज्य की प्रशासकीय क्षेत्र में हस्तक्षेप में वृद्धि हुई।

<> इंग्लैंड ,फ्रांस ,हालैंड ,आदि उपनिवेश स्थापित करने में जोर देने लगे।

<> राष्ट्रवाद ,संरक्षणवाद और प्रतिद्वंदिता में वृद्धि हुई जिससे प्रथम विश्व युद्ध की पृष्ठ्भूमि तैयार किया।


इस क्रांति के फलस्वरूप उदारवादी विचारधारा का प्रादुर्भाव ,व्यक्तिगत स्वतंत्रता ,एवं एडम स्मिथ के लेसेस फेयर का सिद्धांत सामने आया ,राबर्ट ओवन जैसे आदर्शवादी समाजवाद के प्रणेता प्रकाश में आये जो कार्ल मार्क्स के दर्शन का आधार बना। 



















Sunday, February 16, 2020

RO Water : Why in news ??

In recent days we have seen homes have been effectively prohibited from installing domestic reverse osmosis (RO) systems by the Union Environment Ministry. 
The Ministry has issued a draft notification that seeks to regulate membrane-based water filtration systems. Also Banning of RO purifiers where total dissolved solids (TDS) in water are below 500 milligrams per litre is stated.
The regulation deals with places where water meets up with some definite standards as per stated by the bureau of Indian standards . So let us try to understand why is it done so?

◆◆What is RO water ?:--

Reverse osmosis
is a process of water purification that uses a partially permeable membrane  to remove ions, unwanted molecules and larger particles from drinking water. And so the RO water is considered safe for drinking purpose .
Reverse osmosis can remove many types of dissolved and suspended chemical elements as well as biological ones (principally bacteria) from water, and is used in both industrial processes and the production of potable water. 



◆◆What made it to get criticized ????
 
As the demand of purified water is getting increased day by day. On the other side of door RO water is also getting criticized on several aspects.
Wastage Of Water -

With growing population and scarcity of resources water crisis is also an inignorable issue. Household reverse-osmosis units use a lot of water because they have low back pressure. As a result, they recover only 5 to 15% of the water entering the system. The remainder is discharged as waste water. Because waste water carries with it the rejected contaminants, methods to recover this water are not practical for household systems. And thus emense wattage of water happens.

Makes water lesser qualitative:-

Reverse osmosis per its construction removes both harmful contaminants present in the water, as well as some desirable minerals. Modern studies on this matter have been quite shallow, citing lack of funding and interest in such study, as re-mineralization on the treatment plants today is done to prevent pipeline corrosion without going into human health aspect. And thus it is considered that RO water reduces it's quality.

◆Health concerns :--

As stated above the removal of different useful elements leads to long-term health. RO also filters out calcium, zinc, magnesium, which are essential salts needed by the body. Making it worse to consume.

The study has sought directions to the ministry to conduct research work about the "quality" of water produced by reverse osmosis water purifier called RO filter as compared to natural water and also to take further measures and actions regarding this issue .

Saturday, February 15, 2020

Developed INDIA :USA


चर्चा में :-


हाल ही में अमेरिकी प्रशासन ने एक फैसला लिया जिसके तहत अमेरिका ने भारत को विकासशील देशों की सूची से बाहर कर दिया है।
कॉउंटरवेलिंग ड्यूटी के नियमों के तहत भारत को विकसित देशों की श्रेणी में रखा गया है।

यह निर्णय अमेरिका की USTR ( United State Trade Representatives ) संस्था ने लिया। ऐसा इसलिए किया गया ताकि भारत समेत अन्य देशों को GSP दर्जा ना दिया जा सके। वर्ष 2019 में भारत को इस सूची से बाहर कर दिया गया था। नई सूची में 36 विकासशील देश और 44 विकशित देश शामिल है।


क्यों हटाया गया ?:-


USTR के मानदंडों के अनुशार भारत को इसलिए बाहर किया गया क्योकि वह G-20 देशों में आता है,और उसका वर्ल्ड ट्रेड में योगदान 0.5 % से ज्यादा है। G -20 की सदस्यता इंगित करती है की देश विकसित है,
विदित हो की 2018 में भारत का वैश्विक निर्यात में 1.67 % और वैश्विक आयात में 2.57% हिस्सा था।


क्या प्रभाव पड़ेगा ? :-


.इससे अब अमेरिका को होने वाले निर्यात को तरह तरह के अड़चनों से गुजरना पड़ सकता है

.आर्गेनिक केमिकल ,स्टील एंड आयरन प्रोडक्ट ,प्लास्टिक प्रोडक्ट ,लैदर एंड ट्रेवल गुड्स ,इलेक्ट्रॉनिक मशीनरी आदि में नकारात्मक असर होगा,तथा न्यूक्लिअर  मशीनरी ,रबड़ ,फर्नीचर ,एल्युमीनियम प्रोडक्ट आदि में मिनिमम या कम असर पड़ेगा।

. विकासशील देशो की सूची से बाहर होने का सबसे बड़ा नुकसान यह है की अमेरिका के तरजीही फायदों वाले  GSP  में फिर से शामिल होने की भारत की उमीदें ख़त्म हो गई हैं।


नियम या राजनीती :-


24 -25 फ़रवरी 2020 को अमेरिका के राष्ट्रपति का वर्तमान दौरा प्रस्तावित हुआ जिसके मद्देनज़र भारत अमेरिका के व्यापर में कोई बड़ी डील साइन हो सकती है ,और अमेरिका इस डील में अपनी ओर पलड़ा झुकाना चाह रहा है ,जो संभवतः वह हर देश के व्यापार समझौते से पहले करता आया 

भारत को विकशित देश की सूची में रखना अभी के लिए हास्यास्पद होगा,क्योंकि जिस देश में स्वास्थ , शिक्षा,प्रतिव्यक्ति आय ,जीवन प्रत्याशा जैसे महत्वपूर्ण मानदंडों में काफी कमजोर प्रतीत हो रहा है

तो क्या जहाँ हम वैश्वीकरण उदारवादी अर्थव्यवस्था की बात करते हैं वहां  ऐसी परिस्थितियों से फिर से व्यापारिक  संरक्षणवाद की ओर तो नहीं बढ़ रहें ?

कॉउंटरवेलिंग ड्यूटी :-  


घरेलु उत्पादकों की रक्षा हेतु आयात सब्सिडी के नकारात्मक प्रभाव का मुक़ाबला करने के लिए जो शुल्क लगाए जाते हैं उन्हें कॉउंटरवेलिंग ड्यूटी कहा जाता है 

GSP :- 

यह अमेरिका का व्यापारिक कार्यक्रम है 
इसका उद्देश्य विकासशील देशों के आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है। 


International Nurses Day

*In shorts * ❇️ 12 May*   *🔴 International Nurses Day*           अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस *Theme 2020 : "Nursing the World to Health...